मनरेगा ने कोरोना की पहली लहर में ग्रामीण इलाकों को आर्थिक मजबूती प्रदान की, मगर दूसरी लहर के दौर में मनरेगा का बजट आधा ही रह गया। केंद्र सरकार ने वर्ष 2021-22 के लिए मनरेगा योजना को 73 हजार करोड़ रुपए ही दिए हैं। यह राशि बीते वर्ष से करीब 35 फीसदी कम है। बीते वर्ष सरकार ने तय बजट 61.50 हजार करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1.01 लाख करोड़ रुपए कर दिया था। इससे कोरोना संक्रमण के चलते शहरों से गांव की ओर पलायन करके आने वाले श्रमिकों को काम और दाम दोनों ही मिला। यह भी एक वजह रही कि पहली लहर के दौरान देश आर्थिक स्तंभों पर सशक्त तरीके से टिका रहा। अफसोसजनक यह है कि इस बार सरकार इस मामले में अधिक गंभीरता नहीं दिखा रही है।
मनरेगा से वनीकरण, स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों को बचाना, चारागाहों की रक्षा, मिट्टी के जैविक तत्वों में बढ़ोतरी भी की जा सकती है। जल-संरक्षण की दृष्टि से भी मनरेगा बहुत महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। अधिकतर स्थानों पर मनरेगा पूरी तरह आदर्श ढंग से नहीं चल सका। इसके बावजूद इसने अनेक स्थानों पर जल-संरक्षण, नमी संरक्षण जैसे कामों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि मनरेगा में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें भी आती रहती हैं और एक वर्ग इस योजना की खुलकर मुखालफत भी करता रहा है, मगर फिर भी इसका कोई सशक्त विकल्प सामने नहीं आ सका है। यह बात जरूर है कि इसमें होने वाली गड़बडिय़ों को काबू करने के लिए सरकार ने कई अहम कदम उठाए हैं, फिर भी सब कुछ ठीक नहीं हो सका है।
वैसे पलायन करके गांवों में बस जाने वाले मजदूरों में से कई नए रास्ते तलाशने लगे हैं। क्षमता और उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से कई ग्रामीण इलाकों ने नवाचार की नई इबारतें लिखी हैं। कृषि, पशुपालन के जरिए वे गांवों को एक दिशा देने का काम कर रहे हैं। इन नौजवानों को पहचानकर इनके साथ कदमताल मिला लें, तो संभव है कि मनरेगा जैसी योजनाएं अधिक अच्छे परिणाम दे सकें।