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Patrika Opinion : सूदखोरों पर शिकंजा कसने की जरूरत

सूदखोर जरूरतमंद लोग से 10 से लेकर 50 फीसदी तक का ब्याज वसूलते हैं, इन सूदखोरों के कारण कई लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं।

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सूदखोरों पर शिकंजा कसने की जरूरत

सूदखोरों पर शिकंजा कसने की जरूरत

मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में सूदखोरों की चपेट में आए पांच सौ परिवारों को बचाने का दावा प्रशासन ने किया है। प्रशासन ने कुछ सूदखोरों के घर पर छापे मार कर उनके यहां से सूदखोरी से जुड़े दस्तावेज भी बरामद किए हैं। बताया जा रहा है कि सूदखोर जरूरतमंद ग्रामीणों से 10 से लेकर 50 फीसदी तक का ब्याज वसूलते थे। यह स्थिति चिंताजनक है। यह सिर्फ मध्यप्रदेश की ही हकीकत नहीं है, बल्कि ज्यादातर राज्यों में हर शहर-गांव के भीतर ऐसे ही सूदखोर बैठे हुए हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। इन सूदखोरों के कारण कई लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं। इससे इन सूदखोरों की दहशत का आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। ये भोले-भाले लोगों को अपने जाल में फंसाकर नोच रहे हैं। कितना भी पैसा लौटा दो, लेकिन इनका कर्ज चुकता ही नहीं है, क्योंकि जरूरत के वक्त वे मनमानी शर्तें थोप देते हैं। व्यक्ति इनके चंगुल में फंसकर जीवन की एक बड़ी पूंजी इनको सौंप देता है।

देश में बैंकिंग नेटवर्क के विस्तार के बाद भी सूदखोरी एक जटिल समस्या बनी हुई है। भले ही बैंकों ने अपनी ऋण प्रक्रिया को सरल बनाने का दावा किया हो, के्रडिट कार्ड जैसी सुविधाएं सभी को देने की बात कही हो, लेकिन इन्हें हासिल करना अब भी हर किसी के बस की बात नहीं है। बैंक से कर्ज लेने की सभी प्रक्रियाएं उन लोगों के लिए ही आसान होती हैं, जो नौकरीपेशा या जमे जमाए बड़े व्यापारी हैं। आम शहरी या ग्रामीण के लिए बैंक से कर्ज लेना अब भी बहुत मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में वह सूदखोर के पास जाता है, जहां उसे आसानी से कर्ज मिल जाता है, लेकिन उसे सूदखोर की मनमानी शर्तें माननी पड़ती हैं। एक बार फंसने के बाद इन सूदखोरों के चंगुल से निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है।

मध्यप्रदेश ही नहीं देश के दूसरे राज्य भी इन सूदखोरों के खिलाफ अभियान चला चुके हैं, लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। सूदखोरों का एक नेटवर्क खत्म होता है, तो दूसरा तैयार हो जाता है। कारण साफ है कि कर्ज लेने वाले लोग तैयार रहते हैं। उन्हें मुश्किल वक्त में जो विकल्प सूझता है, वे उसी के पास चले जाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकारें इन सूदखोरों पर शिकंजा कसें। इसके साथ ही ऐसे इंतजाम भी करें कि मुश्किल वक्त में हर जरूरतमंद को आसानी से बैंकों से ऋण मिल जाए। इसके लिए बैंकों को थोड़ी उदारता दिखानी चाहिए और नियमों को सरल बनाकर हर जरूरतमंद को ऋण उपलब्ध कराने की राह खोलनी चाहिए।