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सच सामने आया!

आठ नवंबर, २०१६ को एक हजार व पांच सौ के नोट एक झटके में बंद करने के सरकारी फैसले से लगा था कि कालेधन पर अब चोट होगी

Sep 03, 2017 / 03:10 pm

सुनील शर्मा

note ban

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यदि ९९ फीसदी पुराने नोट बैंकों तक पहुंच गए तो इसका मतलब सीधा और साफ है। या तो कालाधन था ही नहीं और यदि था फिर वो तो सफेद हो गया।

आखिर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने नोटबंदी की असलियत जनता के सामने ला ही दी। आठ नवंबर, २०१६ को एक हजार व पांच सौ के नोट एक झटके में बंद करने के सरकारी फैसले से लगा था कि कालेधन पर अब चोट होगी। देश के करोड़ों लोगों ने महीनों परेशानियां भी झेलीं। कहीं शादियों का जश्न फीका पड़ गया तो कहीं हार्ट अटैक से मौत की खबरें आईं। छोटे कारोबारियों का रोजगार चौपट होने व हजारों युवाओं की नौकरियां जाने का कड़वा सच भी सामने आया। बावजूद देश की जनता को विश्वास था कि इतना बड़ा फैसला सोच-समझकर ही लिया होगा।
लगभग दस महीने बाद आई रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने जनता को सकते में जरूर डाला है। जनता को लग रहा है कि देश में कालेधन नाम की चीज है ही नहीं। यदि ९९ फीसदी नोट बैंकों तक पहुंच गए तो मतलब सीधा और साफ है। या तो कालाधन था नहीं और अगर था तो सफेद हो गया। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के बाद वित्त मंत्रअरुण जेटली ने सफाई दी। कहा सरकार का नोटबंदी का फैसला सही था और उसके नतीजे सामने आ रहे हैं। नोटबंदी के तीन बड़े मकसद थे। पहला कालाधन बाहर लाना, दूसरा आतंकवाद पर नकेल और तीसरा नकली नोटों को चलन से बाहर करना।
कालाधन तो बाहर आया नहीं। रही बात आतंकवाद पर नकेल कसने की। नोटबंदी के शुरुआती दिनों में तो आतंककारी वारदातें भी थमी सी लगती थीं और पत्थरबाजी भी। लेकिन धीरे-धीरे इसमें भी तेजी आ गई। घुसपैठ, पत्थरबाजी फिर हो रही है। नोटबंदी का तीसरा मकसद भी सफल होता दिख नहीं रहा। दो हजार व पांच सौ रुपए के नए नोट आने के साथ ही नकली नोट भी पकड़े जाने लगे थे। विपक्ष को छोड़ देश की अधिकांश जनता नोटबंदी के पक्ष में थी।
यह सोच कि सरकारी नीयत ठीक है तो नतीजे भी सकारात्मक आएंगे। पर अभी तक तो वैसा नजर नहीं आ रहा। आम आदमी भी कालाधन बाहर आते देखना चाहता है। आतंकवाद को कुचलते हुए नकली नोटों को नष्ट होते हुए भी देखना चाहता है। पर ये होगा कैसे? सकल घरेलू उत्पाद के ताजा आंकड़े भी चिंताजनक हैं। गत वर्ष की पहली तिमाही की ७.९ फीसदी जीडीपी घटकर ५.७ फीसदी रह गई है। इसे समझने की जरूरत है। एनडीए सरकार का दो तिहाई समय तो पूरा हो चुका है। शेष बीस महीनों में सरकार क्या करके दिखाती है, ये देखने बाली बात होगी।

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