भुगतान के इस तरीके में होता यह है कि चेकआउट पर उपभोक्ता न्यूनतम राशि से भुगतान कर देता है और शेष राशि निर्धारित समय सीमा मेें नियमित अंतराल पर चुकाता है। अगर उपभोक्ता समय पर भुगतान कर देता है तो उसे ब्याज नहीं चुकाना पड़ता। समस्या यह है कि ‘बाइ नाउ, पे लेटर’ के बहुत से एप्स हैं। सबके अपने-अपने नियम-कानून, पेमेंट शेड्यूल और पैनल्टी हैं। आफ्टरपे कुल खरीद मूल्य के 25त्न पर ही विलम्ब शुल्क वसूलता है जबकि बाकी एप इतने उदार नहीं हैं। सामान्य तौर पर जब उपभोक्ता रिटेलर की वेबसाइट पर जाकर साझीदार पेमेंट एप के विकल्प को चुनते हैं तो पेमेंट के ट्रैक से भटकने की आशंका रहती है। ऐसा तब और भी खतरनाक हो सकता है यदि डेबिट कार्ड लिंक किया गया हो, क्योंकि समय पर भुगतान न करने पर ओवरड्राफ्ट शुल्क लगने का जोखिम रहता है।
अध्ययनों के अनुसार, इस तरह के एप लोगों को ज्यादा खर्च करने की प्रवृत्ति की ओर धकेल रहे हैं। एक सर्वे में दो तिहाई लोगों ने कहा कि ‘बाइ नाउ पे लेटर’ के चलते ही वे खरीदारी कर सके जबकि 50 फीसदी लोगों ने माना कि ये एप नहीं होते तो शायद वे अमुक सामान न भी खरीदते। कुछ उपभोक्ता ऐसी एप केवल एक बार किसी बड़े आवश्यक सामान की खरीद के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसकी कीमत हाथोंहाथ चुकाना मुश्किल होता है।
दरअसल ‘बाइ नाउ पे लेटर’ एप युवा खरीददारों को अधिक आकर्षित कर रहे हैं, जो अधिकांशत: ब्याज दरों या विलम्ब शुल्क की गणना करने के बारे में नहीं सोचते। ऐसी एप यूके व ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में काफी पहले से चल रही हैं और इनके लिए अधिक सख्त नियमन की जरूरत पर बल दिया जा रहा है। ऑनलाइन उपभोक्ताओं को सतर्कता के साथ इनका इस्तेमाल करना चाहिए।
(ब्लूमबर्ग)