6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पाकिस्तान : सरकार चाहे जिसकी हो, भारत को रहना होगा सतर्क

सरकार और परमाणु हथियारों को पाक सेना नियंत्रित करती आई है। अगर कोई सिविल सरकार किसी मुद्दे पर इस डीप स्टेट की सीमा रेखा से बाहर निकलने की कोशिश करती है, तो यह बगावत मानी जाती है।

3 min read
Google source verification

image

Patrika Desk

Apr 06, 2022

pakistan

पाकिस्तान : सरकार चाहे जिसकी हो, भारत को रहना होगा सतर्क

सुधाकर जी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय
सेना में मेजर जनरल
रह चुके हैं

डीप स्टेट ( पाक सेना और आइएसआइ ) के मुख्य सिद्धांत हैं- भारत को अपना पारम्परिक शत्रु और मौजूदा खतरा मानना, कश्मीर विवाद, पाकिस्तान का इस्लामीकरण, पंजाब का पाकिस्तान के मुख्य प्रांत का दर्जा बनाए रखना, गैर सरकारी घटकों का सामरिक इस्तेमाल और अन्य मुस्लिम देशों के साथ गठबंधन; खास तौर पर मध्य-पूर्व के साथ-सहायता विचारधारा और सामरिक सहयोग के लिए। अंतरराष्ट्रीय प्ले बॉय से शांतिवादी नेता, फिर तालिबान समर्थक और इस्लामी एकीकरण के सूत्रधार की छवि में स्वयं को पेश करने वाले इमरान खान ने विपक्ष द्वारा संसद में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद चुनाव का विकल्प चुना। इससे पहले उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) से कई सांसद हटा दिए गए। सोचे-समझे ड्रामे के तहत इमरान ने पहले तो डिप्टी स्पीकर से मुलाकात की। फिर पाकिस्तान के राष्ट्रपति से कहा कि वे संसद भंग कर दें। विपक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।
विश्व बैंक के मुताबिक पाकिस्तान उन दस देशोंं में शुमार है, जिन पर विदेशी कर्ज सबसे ज्यादा है। कारण यह है कि वह अपने उत्पादन क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में विफल रहा और वह कर्ज में मिली बाहरी आर्थिक सहायता पर ही निर्भर है। पाकिस्तान का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। महंगाई दर 12 फीसदी से अधिक है, पाकिस्तानी मुद्रा पिछले पांच सालों में 50 फीसदी गिर गई। देश पर कर्ज बढ़ता गया और आइएमएफ व सऊदी अरब से सहायता न मिलने के कारण पाक अब दिवालिया होने के कगार पर है। इसके अलावा यह जून 2018 से पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे सूची मेें आ चुका है। पाक पर आरोप है कि वह आतंक को वित्तीय पोषण देने वाले धन पर पाबंदी लगाने में नाकाम रहा। एफडीआइ प्रतिबंध के चलते उसे सालाना 12 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा हैै। यह तय है कि इमरान खान और उनकी सरकार आर्थिक समस्याओं को हल करने में नाकाम रही है। पाक गोल्डन क्रीसेंट का हिस्सा है, लेकिन साथ ही विश्व स्तर पर आतंक का केंद्र भी। रिश्तेदारों के नाम भ्रष्टाचार के आरोपों में आने के बाद इमरान खान की लोकप्रियता उनकी अपनी पार्टी ही नहीं देश और विदेशों में भी कम हुई है। साथ ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मायनों में अलग-थलग पड़ गया है।
ऐतिहासिक संदर्भ में, देखा जाए, तो पाकिस्तान अस्तित्व में आने के साथ ही द्विराष्ट्र सिद्धान्त और भाषा की जटिल समस्या से जूझ रहा है। मुश्किल यह है कि पाकिस्तानी सेना की राजनीति मेें दखलंदाजी भी लगातार बनी रही। इसीलिए 2018 का चुनाव परिणाम पहले से तय था और सेना की कठपुतली सरकार बन गई। पाक सेना सरकार और परमाणु हथियारों को नियंत्रित करती आई है। अगर कोई सिविल सरकार किसी मुद्दे पर इस डीप स्टेट की सीमा रेखा से बाहर निकलने की कोशिश करती है, तो यह बगावत मानी जाती है। सेना इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद जैसे शब्दों का सहारा लेती है। डीप स्टेट कभी नहीं चाहेगी कि सिविल सरकार खुद को अधिक ताकतवर माने या बना ले। यह वाकई खतरनाक और चिंताजनक स्थिति है।
पाकिस्तान में संकट का कोई भी समाधान निकले या अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इससे इतर एक बात तय है, कुछ चीजें नहीं बदलेंगी। एक, भारत के खिलाफ आतंकियों का इस्तेमाल पाकिस्तान की नीति बना रहेगा। दूसरा, पाक के बिगड़ते आर्थिक हालात और चीन का अमरीका के स्थान पर नई ताकत बन कर उभरना हो सकता है पाकिस्तान की सामरिक भौगोलिक स्थिति का महत्त्व कमतर कर दे। आतंक के खिलाफ जंग के मुद्दे पर चीन अमरीका की बराबरी नहीं कर सकता। चीन की भूसामरिक स्थिति को देखते हुए एक विकल्प हो सकता है कि वह भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करे।
पाक सेना हर सरकार के पीछे छद्म सरकार बन कर भारत और अफगानिस्तान में आतंक को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती रही है। काबुल में तालिबान हुकूमत की वापसी, कश्मीर में उग्रवाद का नया पाक समर्थित चेहरा, भारत-चीन संबंधों का बुरा दौर और चीन की पाक के साथ सदाबहार दोस्ती को देखते हुए भारत को सतर्क होकर इस गठबंधन को अपने खिलाफ काम नहीं करने देना चाहिए। यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में पाकिस्तान रूस के साथ नजदीकियां बढ़ा रहा है। मालदीव और श्रीलंका के इर्द-गिर्द समुद्री सुरक्षा को लेकर भारत के समक्ष नई चुनौतियां हैं। पाक सेना वहां की सरकारें बनाती और गिराती रहेगी। जब तक पाक सेना और आइएसआइ गठबंधन भारत को अपना दुश्मन मानता रहेगा, इस्लामाबाद की सरकार कोई भी हो, सपने में भी भारत के साथ शांति नहीं देख सकती।