डिटर्जेंट, धूम, सिर्फ़ और सिर्फ़ दोहन प्राकृतिक प्रदेयों का…लगभग शोषण की हद तक दोहन..इसका अंजाम सोचती हूँ तो सिहर जाती हूँ। हवा और पानी के लिए प्यूरीफायर लग गए… मोबाइल एयर प्यूरिफायर भी जल्द हमारी नाक पर होंगे ही किसी अलम् की ही तरह..यही तो चाहते हैं हम। जानती हूँ विकल्प नहीं है हमारे पास। हमारी जनसंख्या, हमारी असीमित आवश्यकताएँ ..बहुत समस्याएँ हैं पर हर हाथ सोच ले तो क्या संभव नहीं फिर। हम यहीं तक सोच बैठे है … चारदीवारी का सुख …. चारदीवारी के भीतर! सब्ज़ी अलग-अलग थैली में ही पैक होनी चाहिए..कचरा गाड़ी में नहीं तुरंत सड़क पर ही जाना चाहिए, ढेर सारे कीटनाशक के साथ ही पौंछा लगना चाहिए और एसी सदैव चालू ही रहना चाहिए। कितने उदार हैं ना हम ..हमें सैर के लिए हरियल जगहें चाहिए पर उन्हें सौग़ात में हम हमारा अवशिष्ट ज़रूर सौंप आएँगे। पर्वत, नदी, झील सब जगह प्लास्टिक का अथाह पारावार। नदियाँ वाकई हमारे ही दिए कैमिकल के फ़ैन उगल रही हैं…!
विमलेश शर्मा
फेस बुक वाल से साभार