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कर्म की व्याख्या, सद्कर्मों के महत्त्व पर प्रकाश’ कर्म के विवर्त’ पर प्रतिक्रियाएं

Reaction On Gulab Kothari Article : पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के विशेष लेख -कर्म की व्याख्या, सद्कर्मों के महत्त्व पर प्रकाश’ कर्म के विवर्त’ पर प्रतिक्रियाएं

नई दिल्लीJun 08, 2024 / 05:44 pm

Anand Mani Tripathi

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Reaction On Gulab Kothari Article : कर्म तीन तरह के होते हैं जो विद्या या विद्या भाव से युक्त होने से अलग- अलग तरह के फल प्रदान करते हैं। कर्म की इतनी गहरी बात को इतने सरल शब्दों में बताते पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की आलेखमाला ‘ शरीर ही ब्रह्मांड’ के लेख ‘ कर्म के विवर्तसी को प्रबुद्ध पाठकों ने ज्ञान चक्षु खोलने वाला बताया है। उनका कहना है कि लेख से सद्कर्मों का महत्त्व स्वमेव रूप में अभिव्यक्त हो रहा हैं पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से….
श्रीमद् भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जितना भी ज्ञान दिया उसमें एक बात जो सबको समझ आती है, वह ये कि कर्म किए जाओ, फल की इच्छा मत करो। कर्म ही तुम्हारे साथ जाएंगे, इसके बावजूद आज का मनुष्य बुरे कर्म करते हुए अच्छे फल की लालसा करता है। सबसे बड़ी बात ये कि वह फल क्या मिलेगा पहले यह जानता है फिर कर्म करता है। यही वजह है कि वे न तो ईश्वरीय भक्ति को प्राप्त कर पा रहे हैं और न अपने लक्ष्यों की पूर्ति ही कर पा रहे हैं।
पं. अर्जुन पांडे, ज्योतिषाचार्य, जबलपुर
ज्ञान और कर्म, दोनों का समन्वय ही शांति कहलाता है। कोठारी ने अपने लेख में ईश्वर से योग करने के लाभ और सरलता के गूढ़ रहस्य को सादगी के साथ पारिभाषित किया है। उन्होंने जिस तरह से सदकर्म की व्याख्या की है, वह प्रेरणादायी है।
ममता देवी पांडेय, रिटायर्ड प्राचार्य, मुरैना
कोठारी ने कर्म के अनुसार मनुष्य की सद्गति की बात कही है। लेख में यह स्पष्ट है कि जैसा कर्म करोगे वैसी ही प्रवृत्ति मिलेगी।
डा जेएस यादव, चिकित्सक, भिण्ड

“कर्म के विवर्त” यानि कि कर्म के बिना कुछ भी संभव नहीं है। विद्या भाव के साथ ही कर्म करते हुए, धर्म- वैराग्य ,ऐश्वर्या, ज्ञान आदि बुद्धि के भाव ही प्रसाद गुण वाले हो जाते हैं। ज्ञान और कर्म दोनों का समन्वय ही शांति का कारण है। अपने स्वार्थ के साथ-साथ दूसरों की भलाई सोचने में चंद्रमा के पितृ कर्म का विकास ही प्रेरक होता है। परमार्थ करते समय स्वयं कभी यह अभिमान न करें, कि मैं इनका करता हूं उनका करता हूं।
श्याम श्रीवास्तव “सनम”, साहित्यकार, डबरा
गीता सहित सभी धर्म ग्रंथ कर्म को ही प्रधान मानते हैं। कर्म के महत्व और उसके प्रभाव की सटीक व्याख्या लेख में की गई है। इसमें कर्म और ज्ञान के बीच संबंध पर भी प्रकाश डाला गया है। ‌ स्पष्ट है कि कर्म से सभी अवयवों का निर्माण होता है। यह सत्य सभी को समझना होगा।
डॉ. अनुराग सिंह, प्राध्यापक, शासकीय महाविद्यालय, देवसर, (सिंगरौली)
लेख अध्यात्म से भरा हुआ है। इसमें कर्म को जिस शैली में परिभाषित किया गया है, वह मानव जाति को चिंतन करने के लिए मजबूर कर रहा है।
डॉ. कैलाश तिवारी, शिक्षाविद, सागर

गुलाब कोठारी का यह लेख जीवन को सकारात्मक दिशा में कार्य करने की प्रेरणा देता है। मनुष्य को हमेशा ही अच्छे कर्म करना चाहिए और बुरे कर्मों से बचना चाहिए। अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता है और वह हमेशा सुखी रहते हैं। जीवन में भी शांति रहती है। बुरा काम करने वाले लोगों को कुछ समय के लिए अच्छा लगता है, लेकिन वे हमेशा दुखी रहते हैं।
विशाल मिश्रा, पंडित, बैतूल
जीवन में तीन कर्म उनके विवर्त से विस्तार होने के बाद वे विभिन्न रूपों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये सूर्य, चंद्रमा के प्रभाव से अलग-अलग कर्मों में विभक्त हो जाते हैं। विद्या भाव के साथ कर्म करने से बुद्धि का आवरण हटने पर विभिन्न सुख प्राप्त होते हैं। कोठारी ने मनुष्य जीवन के कर्मों के परिमंडल के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सारगर्भित जानकारी से अवगत कराया है।
रवि जैन, एडवोकेट, रतलाम
गुलाब कोठारी का कॉलम शरीर ही ब्रह्मांड, हर शनिवार को लगातार पढ़ रही हूं। आलेख में ज्ञान और जीवन का मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है। भगवत गीता का ज्ञान भी इसमें समाहित रहता है।
स्नेहलता गंगवाल, साहित्यकार, बुरहानपुर
कोठारी ने सच ही लिखा है कि सदकर्म ही जीवन का सार है। कर्म प्रधान है इसलिए हमें सद्कर्म के रास्ते पर चलना चाहिए । कर्म के अनुसार ही हमें जीवन में फल की प्राप्ति होती है ,जिसमें हमारी विद्या का हमारे कर्म पर भाव होता है।
कैलाश कुमार पांडे, भालूमाडा (अनूपपुर)
कोठारी ने कर्म सम्बन्धी बहुत अच्छा लेख लिखा है।बीहमारे कर्म ही हमारे भावी जीवन का निर्धारण करते हैं। उन्होंने कर्म के जिन तीन प्रकारों की व्याख्या की है, वह जीवन के यथार्थ से जुड़े हुए हैं।
संजय दुबे, शिक्षाविद, छिंदवाड़ा

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