
आत्म-दर्शन : हंसी मत उड़ाओ
इस्लाम इंसानों के बीच स्वस्थ और अच्छे रिश्ते पर जोर देता है और हर उस बात के लिए मना करता है, जिससे रिश्ते बिगडऩे या उनमें खटास आने का अंदेशा हो। वह इंसानों से हर उस छोटी-बड़ी बुराई को दूर करने के लिए कहता है, जिससे आपसी ताल्लुकात बिगडऩे का अंदेशा रहता हो।
कुरआन कहता है, 'ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! न पुरुषों का कोई गिरोह दूसरे पुरुषों की हंसी उड़ाए, सम्भव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियां स्त्रियों की हंसी उड़ाएं, सम्भव है वे उनसे अच्छी हों। न अपनों पर ताने कसो और न एक-दूसरे को बुरे नामों से पुकारो। (49:11) इस्लाम ने दूसरों की नकल उतारने के लिए भी सख्त मना किया है। इस्लाम के आखिरी पैगंबर मुहम्मद साहब ने फरमाया,'मैं किसी की नकल उतारना पसंद नहीं करता, चाहे उसके बदले मुझे बहुत सी दौलत मिले।
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