सबसे अलग-थलग रहना विकास नहीं है। जब ‘अपना-पराया’ में फर्क न रह जाए, जब आप ‘मैं, मेरा’ की सोच को हटाकर, थोड़ा-थोड़ा करके सारी दुनिया के साथ पूर्ण आसक्त बनेंगे, तब आपका जीवन परिपूर्ण होगा। जब लगाव हर इंसान से, हर प्राणी से समान रूप से हो तो यह बुरा नहीं है, लेकिन अगर यह सिर्फ चुने हुए लोगों से हो, तो यह पीड़ा का कारण बन जाता है।