युवाओं को नौकरी देने के भी और महंगाई को जड़ से उखाड़ फेंकने के भी। लेकिन बीते 68 सालों में न बेरोजगारी कम हुई और न महंगाई। सरकारें आती हैं, सपनों के महल खड़े करती हैं और चली जाती हैं। कभी गठबंधन की मजबूरी में काम पूरे ना हो पाने का रोना तो कभी और बहाना। जनता भी भोली है, जल्दी सब कुछ भूल जाती है । लेकिन इस बार कहानी कुछ अलग है।