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इमामों की भारत वापसी, संदेहास्पद है दोनों देशों की खामोशी

पाकिस्तान गए दरगाह प्रमुख के साथ किए गए व्यवहार से संदेश मिलता है कि पाक को भारत व पाक के सूफी दरगाह के प्रमुखों के बीच का आदान-प्रदान और संपर्क में रहना रास नहीं आ रहा है और पाक सत्ता-प्रतिष्ठानों में सूफी प्रभाव कम हो रहा है। कैच न्यूज में विवेक काटजू का विश्लेषण…

Mar 25, 2017 / 11:09 am

पाकिस्तान में तीन दिन से अधिक समय तक ‘गायब’ रहने के बाद हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह के मुख्य इमाम सैयद आसिफ अली निजामी और उनके भतीजे नाजिम निजामी ने भारत लौटने के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बुलावे पर उनसे मुलाकात की। 
यह बात गौर करने की है कि विदेश मंत्रालय ने इसके संबंध में कोई बयान या प्रेस रिलीज जारी नहीं किया पर उन्होंने इमाम और मंत्रियों की इस मुलाकात की एक फोटो अवश्य जारी की है। किसी भी वक्तव्य का जारी न किया जाना भी अगर हैरान करने वाला नहीं तो असाधारण अवश्य है। 
पाकिस्तान के पाकपट्टन में स्थित बाबा फरीद की दरगाह है, जो कि निजामुद्दीन औलिया के आध्यात्मिक गुरु कहे जाते हैं। दरगाहों की सूफी परंपरा का जीवित रखने के जिम्मेदार होने के नाते इनके सरंक्षक भारत -पाक में आपस में एक-दूसरे संबंध बनाए रखते हैं। 
ये दोनों इमाम 8 मार्च को कराची गए थे। पाकिस्तान ने इस मसले पर अभी तक अपनी कोई अधिकारिक टिप्पणी नहीं दी है, जबकि उनके विदेश मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि भारत ने दोनों गायब हुए इमामों को ढूंढऩे के लिए संपर्क किया था। 
स्पष्ट है कि जब से उन्हें उठाया गया और जब तक दोनों को छोड़ा गया इस बीच दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर कूटनीतिक संपर्क बना हुआ था। किसी भी देश ने अब तक इस बारे में हुई बातचीत का ब्योरा जारी नहीं किय। 
सुषमा स्वराज के इमामों से मिलने के बाद भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा कोई बयान जारी नहीं किया जाना यह संदेह पैदा करता है कि दोनों देशों के बीच इस बात पर सहमति बन गई है कि भारत इस मसले पर पाकिस्तान की कोई आलोचना नहीं करेगा और पाकिस्तान भी दोनों पर कोई जवाबी आरोप लगाने से परहेज करेगा। 
इसमें भी कोई संदेह नहीं कि दोनों देशों की दरगाहों के लोग भी इस मुद्दे को इस तरह निपटाना चाहते होंगे कि जिससे यह लोगों की नजर से जल्द से जल्द दूर हो जाए. पर सिर्फ उनकी चाहत ही विदेश मंत्रालय अपना रुख तय नहीं करेगा, यह समझा जा सकता है। 
भारत के विदेश मंत्रालय के लिए यह जरूरी है कि वह इस मुद्दे पर विवाद को स्पष्ट करे। चुप्पी या संकोच से पाकिस्तान की एजेंसियों के पूर्वाग्रह को बल ही मिलेगा, जो कि भारत को नहीं होने देना चाहिए।

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