आईएस का इशारा ! इस्लामिक स्टेट (आईएस) भले ही इस हमले की जिम्मेदारी ले रहा हो लेकिन अभी तो यही समझा जाना चाहिए कि यह स्थानीय कट्टरपंथियों की करतूत है। वे अंतराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर हिंसक कार्रवाई को अंजाम देने में जुट गए हैं। आईएस ने अपनी पत्रिका ‘दबिकÓ के माध्यम से मार्च में ही खुलासा किया था कि बांग्लादेश में सक्रियता के लिए उसने अपने व्यक्ति को नियुक्त कर दिया है। बांग्लादेश में आईएस की सक्रियता के पीछे उसके दो मकसद है। पहला वह कथित रूप से प्रताडि़त म्यांमार के मुस्लिम समुदाय का बदला लेने को आतुर है। दूसरा वह इस बहाने भारत के पूर्वी इलाकों में भी पैर जमाने की फिराक में है। अब तक छिटपुट हिंसक वारदातों से किसी का ध्यान नहीं जाता था। अब रेस्टोरेंट में कत्लेआम पर ये स्थानीय कट्टरपंथी अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचना चाहते हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के इन संगठनों को संरक्षण से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
विभाजन से पड़ा बीज इतिहास के पन्नों को पलटें तो हम देखेंगे कि सत्रहवीं सदी में अंग्रेजों के आगमन के साथ ही अविभाजित बंगाल प्रमुख व्यपारिक केन्द्र के रूप में विकसित हो रहा था। यहां व्यवसाय की बागडोर उच्च शिक्षित हिन्दुओं के हाथ में रही तो कामगार वर्ग मुस्लिम समुदाय से जुड़ा था। इसी वर्ग संरचना का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत 1905 में बंगाल विभाजन को भौगोलिक जामा पहनाया। हालांकि राष्ट्रीय नेताओं ने तब इसे सफल नहीं होने दिया पर वर्ग विशेष की महत्वाकांक्षाओं को जरूर बढ़ा दिया। यही वजह क्थी कि जब 1947 में विभाजन का मौका आया तो बंगाली मुसलमानों ने अपने तात्कालिक हितों की रक्षा के लिए पाकिस्तान में जाना स्वीकार कर लिया। लेकिन बंगालियों को कमजोर करने के लिए तब जिन्ना ने 1948 में पाकिस्तान के लिए उर्दू व अरबीय लिपि का ऐलान किया तो पूर्वी बंगाल में इसका व्यापक विरोध यह कहते हुआ कि वे बंगाली पहले हैं मुसलमान बाद में। सवाल यह उठना स्वाभाविक है कि अािखर ढाका के रेस्टोरेंट में इस तरह का कत्लेआम कर कौन और किस तरह का संदेश देना चाहता है। कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए- इस्लाम इस्लामिक राष्ट्रवाद का मुखर चेहरा है। इसका मुख्यत: बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन रहता है। जब-जब यह पार्टी सत्ता मेें रही है वहां धार्मिक कट्टरता, आतंकवाद और हथियारों की तस्करी के मामले बढ़े हैं।
अस्थिरता का माहौल जमात ए इस्लामी बांग्लादेश में इस्लामिक राज्य की स्थापना चाहता है। वह युद्ध अपराध में अपने शीर्ष नेताओं को फांसी पर चढ़ाए जाने से नाराज है। ऐसे में यह संगठन बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाने में लगा हुआ है। इसको यूं भी माना जाना चाहिए कि बांग्लादेश में सक्रिय अन्य सभी जिहादी संगठनों का नेतृत्व एक तरह से जमात-ए- इस्लामी के पास ही है। अब ये बातें भी सामने आ रही है कि आईएस ने इस हमले को अंजाम दिया। लेकिन फिलहाल इसे आईएस का इशारा ही समझा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए है कि इस्लामिक स्टेट भारत, म्यांमार व अन्य पड़ोसी देशों में भी आतंकी गतिविधियां फैलाना चाहता है। बांग्लादेश के आतंकी संगठनों को प्रश्रय देकर आईएस अपने पनपने की पृष्ठभूमि की तलाश जरूर कर रहा है। जहां तक कि भारत का सवाल है उसे बांग्लादेश मे हो रही इस हलचल को गंभीता से लेना ही होगा। वहां के माहौल का असर हमारे पूर्वी इलाकों पर भी पड़ता है। वहां हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है। अब पश्चिम बंगाल से लेकर सिक्किम जैसे राज्य प्रभावित हो सकते हैं।
और भी हैं कारण इस तरह से अस्थिरता के प्रयासों के पीछे संविधान संशोधन को लेकर कट्टरपंथियों की नाराजगी भी बड़ा करण है। बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने 2010 में 5वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक घोषित किया था। इसी आधार पर सरकार ने पन्द्रहवां संशोधन कर संविधान में धर्मनिरपेक्षता और बंगाली राष्ट्रवाद को पुनसर्थापित कर दिया। हालांकि इस्लाम को राज्यधर्म, बांग्लादेशी नागरिकता जैसी बातें कायम रखी।
प्रो.संजय भारद्वाज दक्षिण दशिया मामलों के जानकार