भारतीय संस्कृति में विभिन्न पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक तत्वों के महत्त्व को पूजा-पाठ के माध्यम से व्यक्त किया गया है। प्रकृति से सन्तुलन के नियमों का विभिन्न ऋचाओं में उल्लेख किया गया है। इनमें वृक्षारोपण करने को आवश्यक तथा पेडों को काटने को निषेध किया गया हैं। पेड़ों, नदियों, पर्वतों एवं सभी जीवों की महत्ता को ध्यान में रखकर उनकी पूजा आदि करने के संदर्भ में भारतीय शास्त्रों में कहा गया है। पीपल जैसे पेड़ को विशेष स्थान दिया गया है। उसकी विशेष पूजा का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त भी अनेक ऐसे उदाहरण शास्त्रों, पुराणों एवं अन्य रचनाओं में है जिनमें सतत विकास लक्ष्यों की भावना निहित है। भारतीय संस्कृति का विचार मन में आते ही शांति और सौहार्द की संस्कृति का अहसास होता है। एक ऐसी संस्कृति जिसमें हर प्राणी चाहे वह मानव हो या अन्य कोई जीव-जन्तु सभी के कल्याण की कामना की जाती है। भारतीय दर्शन का ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का विचार विश्व प्रसिद्ध है। इसमें सम्पूर्ण संसार को अपना परिवार माना गया है। इसका आशय यह भी है कि किसी एक व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य का संसार के दूसरे प्राणियों पर भी प्रभाव पड़ता है, चाहे वह किसी भी देश में निवास करता हो। हर व्यक्ति के क्रियाकलाप पूरी पृथ्वी के पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। अत: सभी से यह अपेक्षा की गई है कि वे सामंजस्यतापूर्ण एवं पर्यावरण अनुकूल व्यवहार के साथ जीवनयापन करें।
भारतीय जीवनशैली में प्राणी मात्र के कल्याण एवं पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित व्यवहार सम्मिलित है। मुश्किल यह है कि हम लोग दिखावे के जीवन व पाश्चातात्य जीवनशैली की ओर आकर्षित होकर अपने सांस्कृतिक मूल्यों से दूर हो रहे हंै, जो न केवल स्वयं के लिए बल्कि संसार के प्रत्येक जीव व तत्वों के लिए हानिकारक है। अत: हमें हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की ओर लौटना चाहिए ताकि सभी का कल्याण हो सके। साथ ही हर किसी को इनको आत्मसात करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।