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आपकी बात, विधेयकों पर सदनों में गंभीर चर्चा क्यों नहीं होती?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

Nov 24, 2021 / 06:34 pm

Gyan Chand Patni

आपकी बात, विधेयकों पर सदनों में गंभीर चर्चा क्यों नहीं होती?

आपकी बात, विधेयकों पर सदनों में गंभीर चर्चा क्यों नहीं होती?

जरूरी है गहन विचार-विमर्श
विधेयक पारित करने से पहले उस पर गहन विचार – विमर्श होना चाहिए। विपक्ष की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान देना जरूरी है। जल्दबाजी में पारित विधेयक वापस लेने की नौबत आ जाती है, जिससे सरकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
-साजिद अल, इंदौर
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पक्ष व विपक्ष की भूमिका
किसी भी लोकतंत्र मे पक्ष व विपक्ष गाड़ी के दो पहियों के समान होते हैं, लेकिन विगत कुछ वर्षों में पक्ष व विपक्ष में कटुता बढ़ती जा रही है। देशहित के मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा की बजाय शोर-शराबा ज्यादा होता है। विपक्ष तार्किक रूप से अपनी बात नहीं रख पाता, तो दूसरी ओर केन्द्र सरकार अपनी मनमर्जी से जल्दबाजी में विधेयक पारित कर रही ही है।
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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जरूरी है गंभीर चर्चा
भारतीय संविधान में प्रावधान है कि कोई भी विधेयक पारित होने से पहले उस पर चर्चा हो। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उस विधेयक को पारित किया जाए। ऐसा सिर्फ उस पर गंभीर चर्चा से ही संभव है। किसी भी विधेयक के पारित होने से पहले गंभीर चर्चा अति आवश्यक है।
– राधे सुथार, चित्तौडग़ढ़
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सांसद गंभीर नहीं
तीन कृषि कानूनों के घटनाक्रम को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि विधेयकों पर सदनों में गंभीर चर्चा नहीं होती। लोकतंत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यही है कि संसदीय प्रक्रियाओं की बारीकी से चिंता की जाए और उस पर पर्याप्त चिंतन और मंथन किया जाए। विधेयकों पर सदनों में गंभीर चर्चा न होने का एक कारण यह भी है कि विधेयक पारित होने के समय भी सांसद गंभीर नहीं दिखाई देते हैं।
सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़
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सरकारों का अहंकार भी कारण
बहुमत की सरकारें भी अक्सर कुछ विधेयक अपनी हठधर्मिता और अहंकार की वजह से बिना चर्चा किए पारित करा देती हैं। विधेयकों पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए, लेकिन होती नहीं। कृषि कानून ताजा उदाहरण हैं।
-पवन कुमार वैष्णव, सलूम्बर, उदयपुर

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जल्दबाजी में होते हैं विधेयक पारित
विभिन्न बिल विशेषज्ञ समितियों में न भेजना व सदनों में चर्चा न करा कर आनन-फानन में पारित कर देना आजकल सरकारों का चलन हो गया है। विधेयकों की संख्या से ज्यादा गुणात्मकता तथा उसकी उपयोगिता पर ध्यान दिया जाए।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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जरूरी है गंभीर चर्चा
यह सत्य है कि सदनों में विधेयकों पर होने वाली चर्चाएं गंभीर रूप ले ही नहीं पातीं। सदन में पक्ष और विपक्ष की खींचतान में आम लोगों की समस्याओं पर चर्चा नहीं हो पाती है और कई बार तो संसद की मर्यादा भी तार-तार होती दिखाई देती है। जरूरी है कि सरकार का नेतृत्व करने वाले अपना स्वार्थ छोड़ कर हर गंभीर मुद्दे पर चर्चा करें और फिर उन पर सही फैसले लें।
प्रिया राजावत, जयपुर
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बदल सकते हैं हालात
सदन में राजनीतिक दल उन्हीं मुद्दों पर चर्चा करते हैं, जिन मुद्दों की वजह से उनकी राजनीति फलती-फूलती है। उन मुद्दों पर चर्चा ही नहीं करते, जिनसे देश का भला हो। अगर हर मुद्दे पर सही तरीके से चर्चा हो, तो हालात बदल सकते हैं।
-बालकिशन अग्रवाल, सूरत, गुजरात
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चर्चा की बजाय होता है हंगामा
सदन में सत्ता पक्ष हो या विपक्ष विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने की बजाय हंगामा करते हंै। सदन की गरिमा को भूल कर गालियां निकालना, कागजों को फेंकना, तोड़फोड़ करना, आपस में झगडऩा आम बात है। सदन की कार्यवाही में जो अड़चन डालता है, उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होती है।
-रेवतसिंह राजपुरोहित, सांचोर
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जनप्रतिनिधियों में डर नहीं
सदन में कार्य हो या न हो, पक्ष-विपक्ष के सभी सदस्यों के वेतन-भत्ते और पेंशन जैसी सुविधाएं सुरक्षित रहती हैं। जनप्रतिनिधियों को नुकसान का डर ही नहीं, फिर वे जनहित के मुद्दों पर गंभीर क्यों होंगे?
-बाल कृण्ण जाजू, जयपुर
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विपक्ष के सुझावों पर ध्यान दिया जाए
विधेयकों पर सदनों में गंभीर चर्चा जरूरी है। विपक्ष के सुझावों पर सरकार ध्यान दे, तो कानून बनने के बाद उसे निरस्त करने की नौबत ही नहीं आए।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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