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छेडख़ानी के घाव

इंदौर की एक मध्यमवर्गीय युवती का एक छोटा सा संदेश आज पूरे देश को हिला गया।

Apr 24, 2018 / 10:39 am

भुवनेश जैन

Eve Teasing

Eve Teasing

इंदौर की एक मध्यमवर्गीय युवती का एक छोटा सा संदेश आज पूरे देश को हिला गया। इस संदेश ने न सिर्फ सरकार और पुलिस, बल्कि हमारे समाज के चेहरे से भी नकाब नोंच डाला। दोगलेपन का नकाब! इस युवती ने दुनिया को बता दिया कि बाहर से सभ्य और सुसंस्कृत दिखने वाला भारतीय समाज, हमारी सरकारों और व्यवस्थाओं का असली चेहरा कितना भद्दा और डरावना है।

इस युवती ने सोशल प्लेटफार्म ट्विटर पर संदेश लिखा कि व्यस्त सड़क पर स्कूटर से जाते समय दो लड़कों ने उसके कपड़े खींचे। इससे वह असंतुलित हो कर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। अगले संदेश में उसने लिखा कि चोट के घाव तो भर जाएंगे, पर उसकी आत्मा पर लगे घाव नहीं भरेंगे। शर्तिया हमारे सभ्य समाज का बड़ा हिस्सा इसे बेहद मामूली घटना कह कर अनदेखा कर देगा। पुलिस और सरकारों के लिए तो ‘छेडख़ानी’ जैसी घटनाएं इतनी आम बात हैं कि इन पर ध्यान देना समय की बर्बादी है।

पर क्या छेडख़ानी की घटनाएं वास्तव में उपेक्षा योग्य हैं? पूरा देश जानता है कि आज हमारे देश में प्रतिदिन लाखों युवतियां जिनमें हमारी बहनें और बेटियां भी शामिल हैं- छेड़छाड़ के दंश का शिकार होती हैं। ऐसी घटनाओं पर सरकारों और समाज का उपेक्षापूर्ण रवैया देखकर खून के आंसू बहाने के अलावा उनके सामने कोई चारा नहीं रहता। किसी से शिकायत करो तो उल्टे उपदेश सुनने को मिलते हैं- ‘लड़कों की तरह मत घूमा करो, कपड़े ठीक से पहनो या घर पर बैठकर चूल्हा-चौका संभालो।Óइसी इंदौर शहर में तीन दिन पूर्व एक मासूम बच्ची से बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी। सुर्खियां बनीं तो प्रशासन हरकत में आया, वर्ना छेडख़ानी तक का अपराध तो यहां क्षम्य है।

यही इंदौर शहर इन दिनों स्मार्ट सिटी बनने की होड़ में सड़कों-गलियों में फैला कचरा साफ करने में लगा है, लेकिन समाजकंटकों के रूप में जो कचरा भरा है, उसे साफ करने की चिंता किसी को नहीं। सड़कों पर थंूकने पर तो जुर्माना लिया जा रहा है, पर सड़कों पर छेड़छाड़ करने की पूरी छूट है। राज्य सरकार भी दिखावे में पीछे नहीं है। बेटी बचाओ के नारे से वर्षों से प्रदेश में शोर मचाया जा रहा है, पर यही मध्यप्रदेश महिलाओं के खिलाफ अपराध में देश में सबसे ऊपर हैं। ‘ट्विटर’ पर संदेश फै ला तो तुरंत शिकार हुई युवती को शाबासी दी गई, पर आवारा बेटों के कान मरोडऩे के कोई प्रयास न पहले हुए, न आगे होते लगते हैं।

पुलिस भले ही इंदौर के इस एक मामले के अपराधियों को पकड़ भी ले, पर ऐसी घटनाएं तो देश के हर शहर-हर कस्बे में हो रही हैं। बेटियों के मन की पीड़ा सुनने की फुर्सत न सरकारों को है और न समाज को। दोनों ही पहले छोटे अपराधों को अनदेखा करते हैं। एक तरह से अपने ही घर में अपराधियों को पाल-पोस कर बड़े अपराधों के लिए तैयार करते हैं। बेटियों का मतलब उनके लिए उन पक्षियों की तरह है, जिनके पंख वे इस डर से कतर देते हैं कि कोई शिकारी उनका शिकार न कर ले।

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