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परवरिश के लिए उपजाऊ मिट्टी है संयुक्त परिवार

परिवार में आपको जिस सदस्य के साथ समस्या है, उससे संबंधित एक लिस्ट बनाएं कि यदि वह व्यक्ति जीवन में न हो तो क्या समस्या होगी। असल में वैचारिक मतभेद हर जगह है, लेकिन मुश्किल में परिवार ही ताकत होता है।

जयपुरMay 19, 2024 / 12:34 pm

Archana Kumawat

parenting

परवरिश के लिए उपजाऊ मिट्टी है
संयुक्त परिवार

यदि मां है प्रथम गुरु तो, संयुक्त परिवार है पाठशाला

परिवार में आपको जिस सदस्य के साथ समस्या है, उससे संबंधित एक लिस्ट बनाएं कि यदि वह व्यक्ति जीवन में न हो तो क्या समस्या होगी। असल में वैचारिक मतभेद हर जगह है, लेकिन मुश्किल में परिवार ही ताकत होता है। रिद्धि देवरा
पेरेंटिंग एंड फैमिली कोच
बच्चे बीज के समान होते हैं। माली के रूप में माता-पिता की यह कोशिश रहती है कि जिस तरह बीज को उपजाऊ मिट्टी मिले, पर्याप्त पानी और धूप मिले, उसी तरह बच्चे को भी उर्वरक मिट्टी के रूप में परिवार में अच्छा और संस्कारित माहौल मिले, पानी की तरह उसका हृदय निर्मल बने, धूप की कठोर किरणों के रूप में जीवन में संघर्ष का सामना करना सीखे।
इसमें माता पिता की जिम्मेदारी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। जैसे मां बच्चे को प्यार करती है। जब वह कुछ गलत करता है तो उसे डांटती है। लेकिन अक्सर संयुक्त परिवारों में मां के इस बर्ताव का अन्य सदस्य साथ नहीं देते हैं। मां को लगता है कि उसकी परवरिश का तरीका गलत है। इससे तनाव बढ़ता है। इसका असर बच्चे की परवरिश पर पड़ता है। तालमेल से ही परवरिश का बेहतर माहौल बनाना होता है।

मन में गांठ न बांधें, खुलकर अपनी बात रखें


कई बार परिवार में ऐसी स्थिति होती है कि मां किसी चीज के लिए बच्चे को मना करती है, लेकिन वहीं दूसरी ओर दादा-दादी या नाना-नानी बच्चे के पक्ष में बोलते हैं और मां की बात को दरकिनार कर देते हैं। ऐसी स्थिति में रिश्तों में दरार पडऩे लगती है। इन परिस्थितियों में बेहतर यही है कि आप बड़ों के प्रति मन में कोई गलत धारणा न बनाएं, बल्कि उनके साथ अकेले में खुलकर बात करें। उन्हें बताएं कि आप जानती हैं कि वे बच्चे से बहुत प्यार करते हैं और बच्चे की खुशी के लिए उसकी हर बात में अपनी स्वीकृति देते हैं, लेकिन किसी चीज के लिए मना करने के पीछे आपकी क्या सोच है। उन पर किसी तरह का दोषारोपण करने के बजाए उनसे यह पूछें कि आपको क्या करना चाहिए। आप किस तरीके से अपने बच्चे का बेहतर पालन-पोषण कर सकती हैं। इस तरह जब आप उन्हें मौका देंगे तो अक्सर वे वही बोलते हैं जो आप करना चाहती हैं। क्योंकि उन्हें भी सही और गलत का फर्क पता होता है।

समय के अनुसार भी ढलना होगा


पहले के समय में परवरिश का तरीका अलग था। पहले कभी बच्चों को सबके सामने डांट दिया जाता था, तो बच्चे को बुरा नहीं लगता था, क्योंकि लगभग सभी बच्चों के साथ ऐसा होता रहता था। अन्य माता-पिता भी बुरा नहीं मानते थे, क्योंकि वे भी उस स्थिति में वैसा ही व्यवहार करते थे। आज बच्चा कहीं बाहर बहुत शरारत कर रहा है तो आप उसे सबके सामने जोर से डांट नहीं लगा सकतीं, क्योंकि आप पर यह प्रेशर होता है कि लोग क्या कहेंगे। सबके सामने डांटने से बच्चे के मन पर भी बुरा असर पड़ता है। इसलिए समय के साथ सोचने के तरीके को बदलना ही होगा। आपने अपने बड़ों से जो सीखा है उनका बहुत महत्त्व है, लेकिन आपको समय के अनुसार भी ढलना होगा।

बुरा न मानें भावनाओं को समझें


अक्सर मांओं की यह शिकायत होती है कि बड़ों के लाड़ प्यार ने बच्चों को बिगाड़ दिया है। घर के बड़ों के बारे में इस तरह के विचार रखने से बेहतर है कि आप अपना बेस्ट करें। बड़े क्या कह रहे हैं, उनकी बातों का बुरा न मानें, बल्कि उनकी भावनाओं को समझें। यदि वे आपकी इच्छा के विपरीत बच्चे की खुशी के लिए कुछ कर रहे हैं तो इसके पीछे उनकी भावना आपकी बात का विरोध करना नहीं हैं, बल्कि वे बच्चे को प्यार करना चाहते हैं। आप पेरेंटिंग के बारे में कुछ सीख रही हैं तो खुद के व्यवहार में बदलाव लाएं। अन्य सदस्य अपने ज्ञान और अनुभव से जो कर रहे हैं उसका सम्मान करें।

पेरेंटिंग का फार्मूला- ज्ञान-मान-पहचान


य दि आप समय के साथ खुद को नहीं बदलते हैं तो आपके मन में हमेशा यह टीस रहेगी कि बच्चे आपकी सुनते नहीं हैं। दरअसल मान कभी मांग कर नहीं लिया जाता है। आप चाहती हैं कि बच्चा आपकी इज्जत करे तो आपको स्वयं इज्जत कमानी होगी। भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि पहले ज्ञान, फिर मान और फिर पहचान। इसलिए पहले पेरेंटिंग के बारे में ज्ञान लें। जब आप बच्चे के साथ सही व्यवहार करेंगे तो बच्चा आपकी बातों को मानने लगेगा। इस तरह अन्य लोग भी आपकी परवरिश से प्रभावित होंगे।

बच्चें की खुशी मां की खुशी में…

  1. दादा या पिता के रूप में आप यह चाहते हैं कि आपका बच्चा खुश रहे। लेकिन बच्चे को तभी खुश रखा जा सकता है, जब मां को खुश रखा जाए। इसलिए अच्छी परवरिश के लिए यह बहुत जरूरी है कि एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें
  2. यदि परिवार के सभी सदस्य एक -दूसरे का सपोर्ट करते हैं तो इससे बच्चे में अच्छे विचारों का जन्म होता है। यदि दादा-दादी ने प्यार से बच्चे को चॉकलेट खिला दी तो इसका इतना प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना उसे बार-बार डांटने से मानसिक स्वास्थ्य पर होगा।
  3. बच्चों की सोच में सकारात्मकता लाना भी जरूरी है। इसलिए उसे कभी यह न कहें कि ऐसा मत करो या यह मत खाओ, तो बच्चा वैसा ही विचार करने लगता है। बच्चे के लिए घर में सकारात्मक वातावरण तैयार करें।
  4. बहुत सी मांएं परवरिश के मामले में अन्य सदस्यों की दखलअंदाजी के कारण तनाव में रहती हैं। ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि रिश्तों की प्रगाढ़ता बढ़ाने पर फोकस करें। अपनी सास या अन्य रिश्तों के साथ मधुर संबंध रखें। बच्चा भी आपसे यह सीखेगा।

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