फैशन डिजाइनर डॉली जैन बताती हैं कि पिछले दिनों हमने ‘सेव द क्लोथ-एम्पावर वीमन’ कैम्पेन शुरू किया है, जिसके तहत टोंक और जयपुर के आसपास के गांवों की महिलाओं को जोड़ा है। इस कैम्पेन का उद्देश्य वेस्ट कपड़े को रीसाइकिल करना है। इसके जरिए हम मैन्यूफैक्चिंग में बचे हुए कपड़े को इक्ट्टा करते हैं और महिलाओं को एक-एक कपड़े को जोडऩे का काम देते हैं। इसके बाद इस कपड़े से जैकेट्स, सूट्स और शॉल तैयार करते हैं। खासतौर पर यह पेचवर्क के रूप में जाना जाता है, जिसे लोग पसंद भी कर रहे हैं।
आइआइसीडी और आइआइएम अहमदाबाद से पढ़ी टैक्सटाइल डिजाइनर भव्या गोयनका बताती हैं कि मैंने २०१८ में अपना काम शुरू किया गया था। फैमिली का टैक्सटाइल का बिजनेस है, जिसमें बहुत-सा वेस्ट मैटेरियल निकलता था। इस बचे हुए मैटेरियल से मैंने फैब्रिक बनाना शुरू किया और आज काफी बड़ी संख्या में आर्टिजंस जुड़े गए हैं। हमारे आस-पास एेसे बहुत से लूम हैं, जो सालों से वेस्ट पड़े थे, इन लूम का यूज करते हुए हम कपड़ा बनाते हैं। न सिर्फ गारमेंट्स में बल्कि होम फैब्रिक्स में ये कपड़ा यूज हो रहा है। मुझे लगता है कि नामी बै्रंड्स को भी इस दिशा में आगे आना चाहिए, ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके।
फैशन डिजाइनर अवनीत आडवानी कहती हैं कि ‘से नो टू सिंगर यूज प्लास्टिक’ एक फैशन स्टेटमेंट बनाना चाहिए। खासकर यंगस्टर्स के बीच ये अवेयरनेस आनी चाहिए। इस दिशा में हमने वेस्ट कपड़े से बॉटल कवर और कैरी बैग्स तैयार किए हैं, इन्हें यंग जनरेशन की पसंद के मुताबिक बनाया है, जब भी वे बाहर निकले फैब्रिक का कैरी बैग साथ लेकर चले। घर से वॉटर बोतल लेकर ही बाहर निकलें।