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चार धाम यात्रा स्पेशलः ये हैं यमुनोत्री का रास्ता, आएंगे 8 पड़ाव

यमुनोत्री के मूल मंदिर निर्माण को लेकर कहा जाता है कि जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में इसका निर्माण करवाया था

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Sunil Sharma

May 10, 2016

Chardham Yatra - Beautiful natural scenes of Yamun

Chardham Yatra - Beautiful natural scenes of Yamunotri temple

समुद्र तल से 3293 मीटर यानी 10804 फुट ऊंचाई पर है। महाराजा प्रताप शाह टिहरी गढ़वाल ने काले मार्बल से इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मूल मंदिर निर्माण को लेकर यह भी कहा जाता है कि जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में इसका निर्माण करवाया था। यमुनोत्री से निकलकर यह नदी उत्तराखंड़, उत्तरप्रदेश हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली पहुंचती है। इलाहाबाद में यह गंगा में आकर मिलती है।

कब खुलते हैं दर्शन
प्रति वर्ष अक्षय तृतीया (आखातीज) को मंदिर के पट खुलते हैं और दीपावली पर इसके पट बंद हो जाते हैं। इस दौरान सम्पूर्ण घाटी मनुष्य विहीन नजर आती है और बर्फ से ढक जाती है।

यमुनोत्री के सुरम्य स्थानों के दर्शन करने के लिए यहां क्लिक करें

यमुनोत्री की कथा
वेदों, उपनिषदों और विभिन्न पौराणिक आख्यानों में इसका उल्लेख है। देवी के महत्व और उनके प्रताप का जिक्र है। पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा भी जुड़ी है। कहा जाता है कि वृद्धावस्था के कारण असित ऋषि कुंड में स्नान करने नहीं जा पाते थे। उनकी श्रद्धा देखकर यमुना स्वयं उनकी कुटिया में ही प्रकट हो गई। इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है। कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहा जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से यमुना और यमराज पैदा हुए। यमुना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी और यम को मृत्यु लोक मिला। जो भी कोई यमुना में स्नान करता है, वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। किवदंति है कि यमुुना ने अपने भाई से भाई दूज पर एक वरदान मांगा था कि भाई दूज को जो भी यमुना में स्नान करेगा, उसे यमलोक नहीं जाना पड़े। अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है।

हनुमान चट्ठी
यह समुद्र तल से 2400 मीटर ऊंचाई पर हनुमान गंगा नदी और यमुना नदी के संगम बिन्दु पर स्थित है। इससे पहले यह जगह यहां से 13 किलोमीटर की दूरी पर यमुनोत्री का आरंभिक बिन्दु था। अब हनुमान चट्ठी व जानकी चट्ठी के बीच यात्रा योग्य सड़क बन गई। इस स्थान पर यात्रियों के लिए जरूरी चीजों के अलावा दवा आदि आसानी से मिल जाती है।

खरसाली
यमुनोत्री से एक किलोमीटर दूर स्थित है खरसोली गांव और जानकी चट्ठी के पास ही कई गर्म पानी के झ्ररने. हरियाली अपनी मनोरम कहानी कहती है। यहां तीन मंजिला भगवान शिव का मंदिर है। यह सुन्दर लकड़ी के काम और पत्थरों की नक्काशी के लिए मशहूर है।

बारकोट
यमुनोत्री से 49 किलोमीटर दूर बारकोट है। यहां से हिमालय की चोटियां व बंदरपूछ पर्वत के शानदार दृश्यों की आनंद ले सकते हैं। यमुनोत्री मार्ग पर पर नदी, हरियाली और सेब के पेड़ आाकर्षण का केन्द्र हैं।

दिव्य शिला
यमुनोत्री मंदिर और सूर्य कुंड के पास दिव्य शिला है। पत्थर की इस पवित्र शिला को दिव्य प्रकाश की पटिया के रूप में जाना जाता है। मान्यता के अनुसार मंदिर से पहले भक्त इसके दर्शन करते हैं। देखें वीडियो



सूर्य पुत्री
यमुनोत्री को सूर्य पुत्री के नाम से भी जाना जाता है। सर्दियों में यमुना जी खरसोली गांव चली जाती है। यहां यमुना के साथ गंगा की भी पूजा की जाती है।

सप्तऋषि कुण्ड
यमुनोत्री में स्थित ग्लेशियर और गर्मपानी के कुंड सभी के आकर्षण का केन्द्र है। यमुनोत्री के उद्गम स्थल के पास ही महत्वपूर्ण जल के स्त्रोत हैं। सप्तऋषि कुंड एवं सप्त सरोवर। यह प्राकृतिक रूप से जल से परिपूर्ण हैं। तीर्थयात्रियों के लिए इन कुंडों का स्नान करने का काफी महत्व होता है। यहां हनुमान, परशुराम काली, एकादश रूद्र आदि के भी मंदिर हैं।

सूर्य कुण्ड
पहाड़ की चट्टान के भीतर गर्म पानी का कुण्ड है। यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसका जल इतना गर्म होता है कि पोटली में डालकर चावल और आलू कुछ ही पलों में पक जाता है।



गौरी कुण्ड
सूर्य कुण्ड से कम गर्म है। इसमें तीर्थ यात्री स्नान करते हैं। यहां प्रकृति के अद्भुत नजारे हैं। सभी यात्री स्नान के बाद दिव्य शिला का पूजन करते हैं। इसके बाद यमुना नदी की पूजा की जाती है। इसके नजदीक ही तप्त कुण्ड है। परंपरा अनुसार इसमें स्नान के बाद यमुना में डुबकी लगाई जाती है।

यमुनोत्री
धार्मिक स्थल के साथ ही मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण प्रकृति की अनुपम भेंट है। यमुनोत्री चढ़ाई मार्ग वास्तविक रूप से दुर्गम और रोमांचित करने वाला है। मार्ग में स्थित गगनचुंबी पेड़, बर्फीली चोटियां सम्मोहित कर देती है। देवदार और चीड़ के हरे भरे जंगल, चारों तरफ फैला कोहरा और घने जंगलों की हरियाली मन को मोहने वाली है। यह वातावरण सुख व आध्यात्मिक अनुभूति देने वाला एवं नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। भारतीय संस्कृति में यमुनोत्री को माता कहा जाता है, यही नहीं भारतीय सभ्यता को महत्वपूर्ण आयाम देती है।

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