
maa jwala devi himachal
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर। इसकी गिनती प्रमुख शक्तिपीठों में होती है। मान्यता है कि यहां देवी सती की जिह्वा गिरी थी। यहां पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। इन नौ ज्योतियो को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
मां के मंदिर में मानी थी अकबर ने भी हार
किंवदंती है कि मां के इस दिव्य स्थान पर मुगल बादशाह अकबर को भी हार माननी पड़ी थी। इस बारे में एक प्राचीन कथा भी प्रचलित है। कहते हैं कि एक बार हिमाचल के नादौन गांव का निवासी ध्यानू भक्त हजारों यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। ध्यानू को मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने गिरफ्तार कर बादशाह अकबर के दरबार में पेश किया। जहां अकबर ने उसे मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए या फिर मां का चमत्कार दिखाने के लिए कहा।
उसने ज्वालादेवी के दर पर जल रही ज्योत को बुझाने के लिए सेना से पानी भी डलवाना शुरू कर दिया। परन्तु कई दिनों तक पानी डालने के बाद भी वह आग नहीं बुझ सकी। इस पर बादशाह ने एक बकरे का सिर काट दिया और ध्यानू भगत को कहा कि यदि मां ज्वालादेवी उसे जिंदा कर देगी तो वह उनके दल को सकुशल जाने देगा।
मां ज्वालादेवी ने स्वीकार नहीं की अकबर की भेंट
अकबर की इस चुनौती को स्वीकार कर ध्यानू भगत मां के दरबार में अरदास करने पहुंचे। जहां उनकी प्रार्थना सुन कर मां ने मृत बकरे को जिंदा कर दिया। इसके बाद अकबर ने अपनी हार स्वीकार करते हुए मां को पूजा का छत्र भेजा। परन्तु मां ने पूजा का छत्र चढ़ाते ही नीचे गिरा दिया, जिसे देखकर अकबर निराश हो गया। इसके बाद उसने ज्वालादेवी के मंदिर में आने वाले भक्तों को कभी नहीं रोका।
आज भी मां के मंदिर में 24 घंटे सातों दिन ज्योत जलती रहती है। दूर-दूर से भक्त इस ज्योत को अपने साथ ले जाते हैं और अपने यहां जलाते हैं। मान्यता है कि यहां जो भी एक बार दर्शन कर लेता है, उसकी सभी मनोकामनाएं तुरंत पूरी होती हैं।
Published on:
14 Oct 2015 02:57 pm
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