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घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंगः यहां है साक्षात महादेव का वास

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक घुश्मेश्वर शिवलिंग है। इसका वर्णन शिव पुराण में भी किया गया है

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Sunil Sharma

Jul 24, 2016

ghushmeshwar temple

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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक घुश्मेश्वर शिवलिंग है। इसका वर्णन शिव पुराण में भी किया गया है। यहां पर भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर अपनी भक्त के मृत पुत्र को जीवनदान दिया था। साथ ही यहां पर प्रकट रूप में साक्षात विराजमान रहने का भी वर दिया था।

ये हैं घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा

शिव पुराण में बताया गया है कि देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ट ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई कष्ट उन्हें नहीं था। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। सुदेहा संतान की बहुत ही इच्छुक थी। अतः उसने सुधर्मा से अपनी छोटी बहन से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया।

पत्नी की जिद के आगे सुधर्मा को झुकना पड़ा। वे उसका आग्रह टाल नहीं पाए। वे अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। घुश्मा अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी। वह भगवान्‌ शिव की अनन्य भक्ता थी। प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा के साथ उनका पूजन करती थी।

भगवान शिवजी की कृपा से थोड़े ही दिन बाद उसके गर्भ से अत्यंत सुंदर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म से सुदेहा और घुश्मा दोनों के ही आनंद का पार न रहा। दोनों के दिन बड़े आराम से बीत रहे थे। लेकिन न जाने कैसे थोड़े ही दिनों बाद सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा तो इस घर में कुछ है नहीं। सब कुछ घुश्मा का है। अब तक सुधर्मा के मन का कुविचार रूपी अंकुर एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। अंततः एक दिन उसने घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को प्रवाहित किया करती थी।



हत्या का समाचार सुनते ही सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे। लेकिन घुश्मा नित्य की भाँति भगवान्‌ शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। वह सदा की भाँति आकर घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा। जैसे कहीं आस-पास से ही घूमकर आ रहा हो।


उसी समय भगवान्‌ शिव भी वहाँ प्रकट होकर घुश्मा से वर माँगने को कहने लगे। वह सुदेहा की घनौनी करतूत से अत्यंत क्रुद्ध हो उठे थे। अपने त्रिशूल द्वारा उसका गला काटने को उद्यत दिखलाई दे रहे थे। घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान्‌ शिव से कहा- 'प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें। निश्चित ही उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है किंतु आपकी दया से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप उसे क्षमा करें और प्रभो!


मेरी एक प्रार्थना और है, लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करें।' भगवान्‌ शिव ने उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं। ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहाँ घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। घुश्मेश्वर-ज्योतिर्लिंग की महिमा पुराणों में बहुत विस्तार से वर्णित की गई है। इनका दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई है।




महाराष्ट्र में है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र के मनमाड से 100 किमी दूर दौलताबाद स्टेशन से लगभग 11 किमी की दूरी पर वेरुल गांव में स्थित हैं। विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाएं भी पास में ही स्थित हैं। 16वीं शताब्दी में इस मंदिर का छत्रपति शिवाजी के दादाजी मालोजी राजे भोंसले ने पुनर्निर्माण था। बाद में महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।


राजस्थान के शिवाड़ में भी है घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

राजस्थान के शिवाड़ में शिवलिंग को भी घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग माना जाता है। भक्तों के अनुसार महाराष्ट्र का घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग मूल नहीं है वरन राजस्थान राज्य में शिवाड में ही मूल ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इसकी पुष्टि के लिए वो शिव पुराण में दिए गए तथ्य बताते हैं। उनके अनुसार जिस देवगिरी पर्वत का वर्णन शिवपुराण में है वह महाराष्ट्र में नहीं है। पुराण में वर्णित तालाब शिवालय के नाम से शिवार के मंदिर के पास अब भी है। जहां एक खुदाई के दौरान कई शिवलिंग पाए गए (जिन्हें कथा के अनुसार घुश्मा पूजा के बाद सरोवर में प्रवाहित कर दिया करती थी) जबकि महाराष्ट्र वाले घुमेश्वर मंदिर के पास बने कुंड में कोई शिवलिंग नहीं मिला।



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