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अद्भुत, अविश्वसनीय अकल्पनीय : इस मंदिर में चोरी करने से पूरी होती है हर इच्छा

अद्भुत, अविश्वसनीय अकल्पनीय : इस मंदिर में चोरी करने से पूरी होती है हर इच्छा

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भोपाल

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Pawan Tiwari

May 18, 2019

chudamani temple

अद्भुत, अविश्वसनीय अकल्पनीय : इस मंदिर में चोरी करने से पूरी होती है हर इच्छा

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां के नियम अजब गजब है। शायद नियमों के कारण ही ये मंदिरें विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के नियम जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। अब आप सोच रहे हैं कि ऐसा कौन सा नियम है, जिसे जानकर हैरान हो जाएंगे, तो अइये हम हम आपको बताते हैं।

हम सभी जानते है कि चोरी करना पाप है। हमारे धर्म शास्त्रों में भी बताया गया है कि चोरी करना पाप है और इस पाप से सभी को बचना चाहिए लोकिन हिन्दुस्तान में एक ऐसा मंदिर है, जहां चोरी करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि जो भी भक्त यहां चोरी करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। तो आइये जानते हैं कहां है यह मंदिर...

यह मंदिर उत्तराखंड के रुड़की जिले के चुड़ियाला गांव में स्थित है। इस मंदिर को चूड़ामणि मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार मंदिर में चढ़ाने के लिए नारियल और फूल लेकर आते हैं। कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्त अपनी इच्छा पूरी करने के लिए चोरी करने आते हैं। इस मंदिर की खासियसत ये है कि यहां चोरी करने वालों को सजा नहीं मिलती बल्कि उनकी मनोकामना पूरी होती है।

मान्यता है कि इस मंदिर में चोरी आस्था के नाम पर की जाती है। यहां आने वाले लोग बताते हैं कि चोरी करने से हर इच्छा पूरी होती है। मान्यता है कि जिन दंपत्तियों को संतान नहीं होती, वे संतान प्राप्ति के चाह में इस मंदिर में आते हैं और माता के दर्शन करने के बाद उनकी मूर्ति के पास रखे लकड़ी का गुड्डा चुराकर ले जाते हैं।

कहा जाता है कि जिस दंपत्ति की मनोकामना पूरी हो जाती है, वे दंपत्ति एक बार फिर अपनी संतान के साथ मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं और यहां भंडारा करते हैं, साथ ही मंदिर में लकड़ी का गुड्डा भी चढ़ाते हैं।

कहा जाता है कि भगवान शिव जिस समय माता सती के मृत शरीर को उठाकर ले जा रहे थे, उसी समय माता सती का चूड़ा यहां पर गिर गया था। यहां के स्थानीय बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण लंढौर रियासत के राजा ने 1805 में कराया था, तब से यह परंपरा चली आ रही है।


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