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यहां ‘इंसानी रूप’ में होती है गणेश जी की पूजा

राजस्थान में गजानन महाराज का एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां गणपति जी बिना सूंड के विराजमान हैं।

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सूंड भगवान गजानन की पहचान है, लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान गजानन के सूंड नहीं है। यहां उनके बाल रूप की पूजा होती है। यहां गणेशजी की पुरुषाकृति प्रतिमा विराजमान है। इस बिना सूंड वाले गणेश जी मान्यता काफी है और हर बुधवार का यहां बड़ी संख्या में भक्त भगवान गजानन के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।


जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गणेश जी को प्रथम पूज्य देवता कहा जाता है। इनकी पूजा अर्चना से घर में सभी विघ्न दूर होते हैं। गणेश जी के देश भर में कई मंदिर है और सभी में वे सूंड के साथ विराजमान हैं। लेकिन राजस्थान में गजानन महाराज का एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां गणपति जी बिना सूंड के विराजमान हैं। क्योंकि यहां उनके बाल रुप की पूजा की जाती है।


गणेश जी का यह अनोखा मंदिर राजस्थान के जयपुर में स्थित है। यह मंदिर गढ़ गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। जयपुर के उत्तर दिशा में यह मंदिर अरावली की ऊंची पहाड़ी पर मुकुट के समान नजर आता है। जयपुर में स्थित गणेश जी के प्राचीन मंदिर में गणेश जी की पुरुषाकृति में प्रतिमा विराजमान है।


यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है, मंदिर तक जाने के लिए लगभग 500 मीटर की चढ़ाई पूरी करनी पड़ती है। प्रसिद्ध गैटोर की छतरियां तक निजी साधन से पहुंचने के बाद यहां के लिए चढ़ाई शुरू होती है। मंदिर इतनी उंचाई पर बसा हुआ है जहां पहुंचने के बाद जयपुर की भव्यता देखते ही बनती है। गढ़ गणेश मंदिर से पूरा शहर नजर आता है।


जयपुर के संस्थापक ने कराई थी मंदिर की स्थापना

यहां मंदिर में मौजूद मूर्ति की तस्वीर लेना प्रतिबंधित है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसकी तहलटी में ही अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन हुआ था। इस मंदिर में प्रसाद चढ़ाते समय गणेश जी के मंत्रों का भी उच्चारण किया जाता है। गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन यहां पर भव्य मेला आयोजित होता है। मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक सवाई जय सिंह द्वितीय ने कराया। सवाई जय सिंह द्वितीय ने जयपुर में अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। इस दौरान तांत्रिक विधि से इस मंदिर की स्थापना कराई थी।


गढ़ गणेश मंदिर का निर्माण खास तरह से कराया गया है। पूर्व राज परिवार के सदस्य जिस महल में रहते हैं, उसे चंद्र महल के नाम से जाना जाता है। यह सिटी पैलेस का हिस्सा है। चंद्र महल की ऊपरी मंजिल से इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के दर्शन होते हैं। कहा जाता है कि पूर्व राजा-महाराजा गोविंद देवजी और गढ़ गणेश जी के दर्शन करके अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते थे। मंदिर में दो बड़े मूषक भी हैं, जिनके कान में दर्शनार्थी अपनी मन्नत मांगते हैं।


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