सरकार में शामिल एक धड़ा भाजपा की इस मुहिम के खिलाफ था। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए जनसमर्थन जुटाने के उद्देश्य से 25 सितम्बर 1990 से सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथ यात्रा की शुरुआत कर दी। यात्रा को बिहार से भी गुजरना था। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रथयात्रा को बिहार में रोकने की धमकी दे डाली। आडवाणी की रथयात्रा ने बिहार में प्रवेश कर लिया। लालू प्रसाद यादव और भाजपा के बीच तनातनी बढ़ चुकी थी। 23 अक्टूबर को यात्रा समस्तीपुर पहुंची, तो बिहार पुलिस ने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। वीपी सिंह सरकार पर संकट के बादल गहरा गए थे और आखिर भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस खींच लिया। गैर कांग्रेसी सरकार एक साल पूरा करने से पहले ही धराशायी हो गई। नवंबर के पहले सप्ताह में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसे दौर में कांग्रेस ने समाजवादी जनता पार्टी के नेता चन्द्रशेखर को समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनवा दिया। चन्द्रशेखर ने 10 नवंबर को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन छह महीने बाद ही कांग्रेस ने सरकार से समर्थन खींच लिया और देश को एक बार फिर मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार होना पड़ा। मई-जून, 1991 में चुनाव की घोषणा हुई। एक तरफ राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस थी, तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी। तीसरे मोर्चे के रूप में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल था। चुनाव हुए तो देश की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस पर भरोसा किया। कांग्रेस के खाते में 232 सीटें आईं। बहुमत से 40 कम। छोटे दलों के सहयोग से कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आ गई।
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भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का जुमला भी औंधे मुंह गिरा राजीव गांधी की हत्या चुनाव प्रचार अपने चरम पर था। सभी राजनीतिक दलों के नेता रैलियों और सभाओं के माध्यम से समर्थन जुटाने के प्रयास में लगे थे। राजीव गांधी भी 21 मई को प्रचार के लिए तमिलनाडु पहुंच थे। श्रीपेरम्बदूर में उनकी सभा होनी थी। सभा से पहले एक महिला ने विस्फोट कर राजीव गांधी की हत्या कर दी। चुनाव प्रचार के दौर में राजनीतिक माहौल पूरी तरह से बदल गया। एक दौर का मतदान हो चुका था। दूसरे दौर के मतदान में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति का दौर चल पड़ा। सहानुभूति के उस माहौल के चलते कांग्रेस दूसरे दलों को पीछे छोड़ते हुए सत्ता के नजदीक पहुंचने में सफल हो गई।
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क्या अमरीका के खिलाफ इस महायुद्ध में मोदी करेंगे ड्रैगन की मदद? नरसिम्हा राव का चेता भाग्य चुनाव प्रचार के बीच में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस सकते में थी। सात साल के भीतर उसने अपना दूसरा बड़ा नेता खोया था। कांग्रेस बहुमत के करीब पहुंची, तो सवाल खड़ा हुआ प्रधानमंत्री का। नेता अनेक थे लेकिन चिंता इस बात की थी कि अल्पमत की सरकार को कौन पांच साल तक चला सकता है। तलाश शुरू हुई तो पीवी नरसिम्हा राव पर जाकर ठहरी। राव 1991 के चुनाव में उम्मीदवार नहीं बने थे। इसके बावजूद कांग्रेस ने राव को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। राव ने बाद में आंध्रप्रदेश की नांदयाल सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और पौने छह लाख मतों से जीते। राव नेहरू-गांधी परिवार के अलावा पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने पूरे पांच साल तक प्रधानमंत्री पद संभाला।