दोनों सदनों से छीनना चाहती है अधिकार राज्यसभा को लेकर सरकार की हिचक का खुलासा विपक्ष के सौगत राय और भृतहरि महताब ने चर्चा के दौरान किया। सौगत राय ने आसन से लोकसभा के अधिकारों के संरक्षण की मांग करते हुए कहा कि बिल को वित्त विभाग की स्थायी समिति तथा अन्यान्य समितियों के पास भेजने की अपेक्षा ज्वाइंट सलेक्ट कमेटी ऑफ हाउस बनाने के निर्णय से साफ है कि सरकार बिल को पास करने का अधिकार दोनों सदनों से छीनना चाहती है। नियमों के मुताबिक इस कमेटी से पास होकर आने वाले बिल को लोकसभा तथा राज्यसभा को पास करना ही होगा। आखिर सरकार ने यह निर्णय क्यों लिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि राज्यसभा में संख्याबल की कमी की वजह से सरकार को शंका है कि बिल वहां गिर सकता है इसलिए उसे सुरक्षा कवच पहना कर पेश किया जाए ताकि विधेयक पास हो जाए।
स्थायी समितियों पर भरोसा क्यों नहीं बीजद के भृतहरि महताब ने सवाल किया कि ज्वाइंट सलेक्ट कमेटी ऑफ हाउस बनाने के पीछे कहीं राज्यसभा को नजरअंदाज करने की मंशा तो नहीं है। सब देख ही रहे हैं कि सरकार पिछले दो साल से राज्यसभा को नजरअंदाज करने की कोशिश कर ही रही है। आखिर सरकार को स्थायी समितियों पर भरोसा क्यों नहीं है! क्या सरकार का कोई छुपा हुआ एजेंडा है। संसदीय कार्य राज्यमंत्री एस एस अहलूवालिया ने यह कहकर महताब को संतुष्ट करने की कोशिश की कि अन्य समितियों के मुकाबले यह समिति बिल के स्वरूप को बदलने का अधिकार रखती है, लेकिन महताब ने यह कहकर उन्हें निरुत्तर कर दिया कि समिति में सत्तापक्ष के सदस्यों का संख्याबल विरोध के स्वरों को वोट के जरिए दबा देता है।
उपस्थिति के दवाब का दिखा परिणाम
भाजपा सांसदों की संसद में उपस्थिति को लेकर लगातार बनाए जा रहे दवाब का परिणाम गुरुवार शाम लोकसभा में तब दिखा जब पूरक कार्यसूची के जरिए दो विधेयक पेश किए जाने पर संसदीय कार्य संचालन नियमों का हवाला देकर सरकार को कठघरे में खडा करने की विपक्ष की कोशिश नाकाम हो गई। हुआ यूं कि स्टेट बैंक निरसन एव संशोधन अधिनियम पास होने के बाद अचानक पूरक कार्यसूची के जरिए आसन ने श्रम एवं रोजगार मंत्री को श्रम कानूनों में रिफार्म्स बिल पेश करने के लिए कहा तो विपक्ष के एन के प्रेम चन्द्रन ने कार्य संचालन नियमों का हवाला देकर बिल को पेश करने की आसन की व्यवस्था पर सवाल उठाया, लेकिन सदन में सत्तापक्ष के सदस्यों की भारी उपस्थिति की वजह से प्रेमचन्द्रन को विपक्षी बैंचों से समर्थन नहीं मिला और आसन ने ध्वनि मत से बिल पेश करने की मंजूरी दे दी।