दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी और उसके दिग्गजों ने हैदराबाद ग्रेटर निगम चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर गृहमंत्री अमित शाह समेत दर्जनों केंद्रीय मंत्री और कई छोटे-बड़े नेताओं ने प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार किया।
कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार ने जारी की नई गाइडलाइन, जानें दिसंबर में क्या हुए बदलाव हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल था कि आखिर बीजेपी निगम चुनाव में अपने शीर्ष नेतृत्व को लेकर क्यों लगा रही है। दरअसल इसके पीछे बीजेपी अहम रणनीति है आईए जानते हैं पूरा मामला।
हैदराबाद के निकाय चुनावों ने ओवैसी की पेशानी में बल डाल दिए हैं. चाहे एआईएमआईएम हो या टीआरएस, दोनों प्रतिद्वंद्वी पार्टियों ने नहीं सोचा था कि बीजेपी इन चुनावों को इतनी गंभीरता से लेगी, लेकिन बीजेपी के तूफानी प्रचार ने इन दोनों ही पार्टियों का हिला कर रख दिया है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कोई बड़ी बात नहीं है कि इस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे। भाग्यनगर के साथ दक्षिण में चमकने की तैयारी
भारतीय जनता पार्टी ने हैदराबाद निगम चुनाव को अपनी रणनीति के तहत चुना है। ये रणनीति है आने वाले दक्षिण राज्यों के चुनाव में अपनी मजबूत स्थिति। हैदराबाद के निगम चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के साथ बीजेपी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी मजबूत स्थिति लाने की तैयारी में जुटेगी।
भारतीय जनता पार्टी ने हैदराबाद निगम चुनाव को अपनी रणनीति के तहत चुना है। ये रणनीति है आने वाले दक्षिण राज्यों के चुनाव में अपनी मजबूत स्थिति। हैदराबाद के निगम चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के साथ बीजेपी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी मजबूत स्थिति लाने की तैयारी में जुटेगी।
इस प्रदर्शन का असर इन चुनाव में निश्चित रूप से बीजेपी को मिलेगा। वहीं कर्नाटक में पहले ही बीजेपी की सरकार है। ऐसे में दक्षिण को फतह करने के लिए ‘भाग्यनगर’ का चुनाव बीजेपी को दक्षिण में चमकने का रास्ता साफ करेगा।
लोकसभा के बाद उपचुनाव में जीत से उत्साह
बीजेपी की नजर हैदराबाद पर उस वक्त पड़ी जब यहीं बरसों पुराना सूखा लोकसभा चुनाव के दौरान खत्म हुआ। 2019 में बीजेपी को यहां से चार सीटें जीतने में कामयाबी मिली। इसने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में जोश भर दिया। इसके बाद हाल में हुए दुमका में हुआ उपचुनाव जीतकर बीजेपी ने अपने उत्साह को कायम रखा।
बीजेपी की नजर हैदराबाद पर उस वक्त पड़ी जब यहीं बरसों पुराना सूखा लोकसभा चुनाव के दौरान खत्म हुआ। 2019 में बीजेपी को यहां से चार सीटें जीतने में कामयाबी मिली। इसने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में जोश भर दिया। इसके बाद हाल में हुए दुमका में हुआ उपचुनाव जीतकर बीजेपी ने अपने उत्साह को कायम रखा।
इन्हीं चुनावों की जीत ने बीजेपी में जोश भरने का काम किया और अब दक्षिण को फतह करने के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जी जान से जुट गया है। पार्टी के पक्ष में ध्रुवीकरण
ओवैसी की सांप्रदायिकता के विरोध में निगम चुनाव बीजेपी के लिए रामबाण साबित हो सकता है। सांप्रदायिकता के विरोध में मतदाता बीजेपी के बैनर तले आ सकते हैं। प्रचार के दौरान राजनीतिक ध्रुवीकरण पार्टी के पक्ष में दिखाई दे रहा है।
ओवैसी की सांप्रदायिकता के विरोध में निगम चुनाव बीजेपी के लिए रामबाण साबित हो सकता है। सांप्रदायिकता के विरोध में मतदाता बीजेपी के बैनर तले आ सकते हैं। प्रचार के दौरान राजनीतिक ध्रुवीकरण पार्टी के पक्ष में दिखाई दे रहा है।
बीजेपी को भी उम्मीद है कि इन चुनावों में मतदान पिछली बार के मुकाबले ज्यादा होगा और इसका फायदा पार्टी को जरूर मिलेगा। बीजेपी के तीन वादे तय करेंगे दिशा
बीजेपी ने हैदराबाद चुनाव के लिए जनता के बीच तीन वादे किए हैं। अगर सत्ता में आए तो वे अपने इन तीन वादों को पूरा करेंगे।
बीजेपी ने हैदराबाद चुनाव के लिए जनता के बीच तीन वादे किए हैं। अगर सत्ता में आए तो वे अपने इन तीन वादों को पूरा करेंगे।
1. जीतने पर हैदराबाद का संपूर्ण विकास करेंगे और इसे एक अत्याधुनिक शहर बनाएंगे।
2. हैदराबाद को मिनी इन्डिया का सुन्दर रूप देंगे
3. हैदराबाद का नाम बदल भाग्यनगर करेंगे और निजाम संस्कृति से मुक्त कर संपूर्ण क्षेत्र के भाग्योदय की दिशा में कार्य करेंगे।
2. हैदराबाद को मिनी इन्डिया का सुन्दर रूप देंगे
3. हैदराबाद का नाम बदल भाग्यनगर करेंगे और निजाम संस्कृति से मुक्त कर संपूर्ण क्षेत्र के भाग्योदय की दिशा में कार्य करेंगे।
दरअसल तीन वादे जरूर हैं लेकिन दक्षिण राजनीति में इन तीन वादों को समर्थन मिलता है तो इसके सहारे पार्टी आगामी चुनाव की दिशा भी तय कर लेगी। अतिआत्मविश्वास से परहेज का संदेश
बीजेपी इस चुनाव के जरिए जनता और अन्य राजनीतिक दलों के बीच एक बड़ा संदेश देना चाहती है और वो संदेश है अति आत्मविश्वास से परहेज का। दरअसल स्थानीय चुनावों में ये देखा जाता है जो पार्टी वर्षों से जीतती आ रही है वो अति आत्मविश्वास में आ जाती है।
बीजेपी इस चुनाव के जरिए जनता और अन्य राजनीतिक दलों के बीच एक बड़ा संदेश देना चाहती है और वो संदेश है अति आत्मविश्वास से परहेज का। दरअसल स्थानीय चुनावों में ये देखा जाता है जो पार्टी वर्षों से जीतती आ रही है वो अति आत्मविश्वास में आ जाती है।
देश में एक हफ्ते के अंदर एक और तूफान का मंडराया खतरा, देश के इन राज्यों में मौसम विभाग की ओर से जारी हुआ रेड अलर्ट हैदराबाद निगम चुनाव में ओवैसी भी शायद यही गलती कर बैठे। प्रचार के दौरान जितनी ताकत बीजेपी ने झोंकी ओवैसी उसके मुकाबले आधा भी नहीं कर पाए।
इसके साथ ही बीजेपी ये भी बताना चाहती है कि वो सिर्फ लोकसभा या राज्यसभा चुनाव के लिए ही नहीं बल्कि हर चुनाव जीतकर जमीनी स्तर पर जनता के लिए काम करना चाहती है।