मौसम अपडेटः उत्तर-पूर्वी मानसून देगा दस्तक, इन राज्यों में बारिश के साथ चलेंगी ठंडी हवाएं पर्रिकर की तबीयत से प्रदेश में भाजपा की लगातार घटती साख को बचाने के लिए जरूरी था कि भाजपा कुछ ऐसा करे जिससे कार्यकर्ताओं समेत नेताओं में उत्साह बढ़े। कांग्रेस के दो विधायकों को तोड़ने के बाद भाजपा खेमे में सकारात्मक संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। हालांकि इस सियासी घटना क्रम से ये संकेत मिलता है कि पार्टी नेतृत्व इन दिनों गोवा में कांग्रेस विधायकों का इस्तीफा/दलबदल कराने में जुट गया है। दरअसल दोनों पार्टियों (भाजपा,कांग्रेस) का केंद्रीय नेतृत्व राज्य में होने वाली गतिविधियों पर सीधे तौर पर नजर रख रहा था।
हालांकि उसमें शुरुआती सफलता बीजेपी को मिली है। लेकिन कमल से निपटने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अभी मैदान नहीं छोड़ा है। ये जरूर है कि उन्होंने प्रदेश में नई पीढ़ी के नेतृत्व को आगे लाने के प्रयोग के तहत गोवा के पुराने नेतृत्व को बदलते हुए तीन नए नेताओं को चुना, जिसका खामियाजी उन्हें दो विधायकों के बगावत से चुकाना पड़ा।
राहुल की युवा टीम बदलाव के दौर से गुजर 125 साल पुरानी पार्टी को सैद्धांतिक रूप से संभालने में सही रही है, लेकिन प्रायोगिक तौर पर पर्दे के पीछे होने वाली राजनीतिक उठापटक और सत्ता की राजनीति से जुड़े तमाम समीकरणों को साधने में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है।
उधर..पर्रिकर की तबीयत खराब होने के बाद भाजपा के ही कई नेताओं ने कांग्रेस से हाथ मिलाने के संकेत दिए थे, लेकिन कांग्रेस इन्हें भुनाने में अब तक सफल नहीं हुआ है। दो विधायकों के जाने के बाद अब राहुल गांधी भी भाजपा के खेमे में हड़कंप मचाने की तैयारी कर रहे हैं। यही वजह है कि पार्टी में नए और पुराने नेताओं के बीच तालमेल बैठाते हुए राहुल सीटों की गिनती बढ़ाने में जुटे हैं। खास बात यह है कि इस जंग में राहुल जीत जाते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभी चुनाव 2019 में उनके नेतृत्व को मजबूती मिलेगी।