हकीकत यह है कि भाजपा के पास आज के दिन में बहुमत साबित करने के लिए विधायकों की पर्याप्त संख्या नहीं है, लेकिन आंकड़ों को पक्ष में करने के लिए शाह ने पार्टी के नेताओं को एक फार्मूले पर काम करने को कहा है। इस फार्मूले के तहत पार्टी को विपक्षी दलों के उन लिंगायत विधायकों से सबसे ज्यादा उम्मीद है जो कांग्रेस-जेडीएस के पोस्ट पोल गठबंधन से असंतुष्ट बताए जा रहे हैं। लिंगायत विधायकों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि कांग्रेस ने कुमारस्वामी को उनका मुखिया बना दिया है जो लिंगायत विधायकों को स्वीकार नहीं है। शाह इसी असंतोष का लाभ उठाना चाहते हैं। इस लिहाज से लिंगायत समुदाय के 12 विधायक येदियुरप्पा का साथ दे सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो भाजपा के पास बहुमत से अधिक संख्या विधायकों का समर्थन होगा। ऐसा नहीं होने भाजपा की योजना ये है कि ये विधायक सदन में वोटिंग न करें या फिर सदन का बहिष्कार कर दें।
दरअसल कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटों में 222 सीटों पर मतदान हुआ है। इस लिहाज से भाजपा के लिए 112 विधायकों का समर्थन हासिल करना जरूरी है। भाजपा के खाते 104 विधायक हैं। कुमारस्वामी दो सीटों पर चुनाव जीतकर आए हैं। उनका एक ही वोट काउंट होगा। फ्लोर टेस्ट के दौरान अगर दो निर्दलीय और 12 लिंगायत के विधायक गैरहाजिर हुए तो सीटों की संख्या घटकर 207 रह जाएगी। ऐसे में ट्रस्ट वोट के लिए भाजपा को केवल 104 वोटों की जरूरत पड़ेगी जो उसके पास है। यह वोट कैसे मिलेगा इस बात का खुलासा पार्टी ने नहीं किया है। यानि हर स्थिति में बहुमत हासिल करने के लिए भाजपा के पास कोई न कोर्ठ फार्मूला है।
भाजपा नाराज विधायकों को तर्क दे रही है कि लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया है और जेडीएस काफी अंतर से तीसरे स्थान पर है। इस विधानसभा चुनाव में 60प्लस सीटों का फायदा होने के बाद सबसे बड़ी होने का दावा करते हुए भाजपा विधायक दल के नेता येदियुरप्पा सीएम पद का शपथ ले चुके हैं। अब बहुमत हासिल करने की बारी है। लिंगायत विधायकों को भाजपा की तरफ ये इस बात पर भी जोर दिया जा रहा है कि वोकालिगा और लिंगायत के आधार पर जेडीएस ने भाजपा सरकार को गिराने का काम 1996 में किया था, जिसके चलते शकंरसिंह वाघेला सीएम बने थे और उनकी सरकार नहीं चल पाई थी।