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LJP में फूटः चिराग को चित करने के लिए ऐसे पड़ी बगावत की नींव, JDU ने भी निभाया अहम रोल

LJP में फूट के साथ अपनी ही पार्टी में अकेले पड़े चिराग पासवान, चाचा पशुपति के जरिए नीतीश ने ऐसे लिया चुनाव में लगे घाव का बदला

Jun 15, 2021 / 08:05 am

धीरज शर्मा

Know how JDU play important role to Damage Chirag Paswan in LJP

Know how JDU play important role to Damage Chirag Paswan in LJP

नई दिल्ली। लोक जनशक्ति पार्टी ( LJP ) में जारी घमासान के बीच चिराग पासवान ( Chirag Paswan ) को बड़ा झटका लगा है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ( Om Birla ) ने पशुपति पारस ( Pashupati Paras ) को पार्टी का नेता बनाने की अधिसूचना जारी कर दी है। इसके साथ ही पशुपति पारस लोक जनशक्ति पार्टी के संसदीय दल के नेता चुन लिए गए हैं। अपनी ही पार्टी में चिराग अकेले पड़ गए हैं। चिराग को चित करने में ना सिर्फ चाचा पशुपति पारस बल्कि जेडीयू ( JDU ) ने भी बड़ी भूमिका निभाई।
पार्टी में बगावत की नींव बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान में उस समय ही पड़ गई थी जब चिराग ने अपने सांसद चाचा पशुपति पारस को नीतीश की तारीफ करने पर पार्टी से निकालने की चेतावनी दी थी।
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ऐसे बिगड़ी चाचा-भतीजा के बीच बात
चाचा और भतीजा के बीच विवाद की स्थिति बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही बन गई थी। राम विलास पासवान के निधन के बाद जब चिराग को चीफ बनाया गया तो उन्होंने मनमाने फैसले लेना शुरू कर दिया। इसी कड़ी में उन्होंने चुनाव के दौरान जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला किया तो चाचा पशुपति पारस ने इसका विरोध किया।
चाचा को पार्टी से निकालने की धमकी पड़ी भारी
इसी दौरान जब पारस ने नीतीश की तारीफ की तो चिराग ने उन्हें पार्टी से निकालने की धमकी दी। तब पशुपति और चिराग के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। यहीं से चिराग को चित करने की स्क्रिप्ट की शुरुआत भी हो गई। चाचा-भतीजे की अनबन को जेडीयू ने भुनाना शुरू कर दिया।
नीतीश ने चिराग को धीरे-धीरे लोजपा से अलग करने की योजना बनाई। पहले इकलौते विधायक को जदयू में शामिल किया। फिर 200 पदाधिकारियों को जदयू की सदस्यता दिलाई। अंत में चिराग को संसदीय दल में भी अलग-थलग कर दिया।
नीतीश ना सिर्फ चुनाव के दौरान चिराग की ओर से उन पर किए हमलों से खफा थे, बल्कि चुनाव के बाद प्रदेश में तीसरे नंबर की पार्टी बनने की वजह भी वे चिराग को ही मानते हैं। यही वजह थी कि नीतीश ने तभी से ठान ली थी कि वे चिराग को अपने ही दल में कमजोर कर देंगे।
लिहाजा उन्होंने अपने करीबी ललन सिंह और महेश्वर हजारी को दिल्ली में रहकर इस ऑपरेशन की बागडोर सौंपी। नतीजा ये हुआ कि कुछ महीनों में ही एलजेपी का एकमात्र विधायक राजू कुमार सिंह को JDU में शामिल किया गया फिर बीजेपी ने भी दूसरा झटका दिया और एकमात्र एमएलसी नूतन सिंह बीजेपी में शामिल हो गई।
पार्टी में विरोध की लहर शुरू हो गई। पशुपति को भी बल मिला और ललन सिंह और महेश्वर हजारी की काउंसलिंग के जरिए पारस पांच सांसदों के साथ बगावत को तैयार हो गए। नतीजा सबके सामने है।
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आगे क्या?
पशुपति ने भले ही अब तक ये कहा हो कि उन्होंने य कदम लोजपा को बचाने के लिए लिया है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि वे जल्द ही जेडीयू का दामन थाम सकते है। इससे उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल जाएगी। वहीं नीतीश की स्थिति भी बीजेपी के मुकाबले ज्यादा बेहतर होगी। बीजेपी के पास जहां 17 सांसद हैं, वहीं पांच सांसदों के साथ जेडीयू के 21 सांसद हो जाएंगे। लिहाजा उसे केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने ज्यादा सांसद शामिल करने में मदद मिलेगी।

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