मुर्मू बीजेपी के लिए काफी काम भी कर चुकी हैं और मोदी-शाह की करीबी भी मानी जाती हैं। यही नहीं पूर्वी भारत में जड़ें जमा रही बीजेपी को द्रौपदी के सहारे ज्यादा लाभ मिलने की उम्मीद है।
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पहला निशानाः महिला सशक्तिकरण और आधी आबादी को संदेश
राष्ट्रपति चुनाव के अंकगणित में भाजपा और एनडीए का पलड़ा भारी है और ऐसे में मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय है। जीतने के बाद द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति भी होगी।
उनके पहले ही देश की पहली आदिवासी राज्यपाल बनने का रिकॉर्ड दर्ज है। लेकिन बीजेपी ने उनके नाम को आगे बढ़ाकर देश की आधी आबादी को बड़ा संदेश दिया है।
हाल के चुनाव में बीजेपी को महिलाओं का बड़ा समर्थन मिला है। यही वजह है कि अब बीजेपी महिलाओं की उपस्थिति को नकार नहीं सकती है। विपक्ष वैसे भी बीजेपी पर कैबिनेट में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और महिला सशक्तिकरण बिल पास कराने का दबाव बनाता रहा है।
ऐसे में देश के सर्वोच्च पद के लिए सामने लाना वह भी सबसे वंचित आदिवासी वर्ग से उभारने का एक मजबूत राजनीतिक संदेश है। इतना ही नहीं बीजेपी की 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति के लिए भी यह एक कारगर कदम साबित हो सकता है।
बीजेपी ने मुर्मू के जरिए सामाजिक और जातिगत समीकरणों को साधने की भी कोशिश की है। दरअसल देश की राजनीति इन दिनों दलितों और पिछड़ा वर्ग के इर्द-गिर्द घूम रही है।
आम आदमी पार्टी अब गांधी के नहीं बल्कि बाबा साहेब अम्बेडकर के नाम पर आगे बढ़ रही है। पूर्वी भारत में इस समीकरण का बड़ा महत्व भी है। लिहाजा भाजपा की सामाजिक समीकरणों की रणनीति भी इससे साफ होती है, क्योंकि उसने 2017 में दलित समुदाय से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था।
अब BJP ने आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रोपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी की चुनावी सफलता में इन दोनों समुदाय का बड़ा योगदान रहा है। वह इन दोनों आधारों को मजबूत बनाने में जुटी हुई है।
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