जनवरी, 2018 में भी मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री कुशवाहा ने कहा था कि शीर्ष अदालतों में आज भी जज का बेटा ही जज बनता है। उन्होंने परिवारवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यह न्यायपूर्ण व्यवस्था नहीं है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 80 प्रतिशत जज किसी न किसी परिवार से आते हैं, जो न्यायपालिका से जुड़ा हुआ है। न्यायपालिका में दलित, पिछड़े वर्ग और महिलाओं का न के बराबर प्रतिनिधित्व है और इसकी ओर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति कोविंद भी इशारा कर चुके हैं। उन्होंने अपने बयान में इस बात का भी जिक्र किया था कि अगर हम जज के नामों को देखेंगे, तो हमें उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता चल जाएगा। कुशवाहा ने न्यायपालिका में चयन की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा था कि न्यायपालिक में चयन प्रक्रिया भारतीय प्रशासनिक सेवा की तरह होनी चाहिए और ज्यूडिशरी आयोग का गठन होना चाहिए। उन्होंने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि उनके मन में सामाजिक न्याय को लेकर दर्द है और वे बाकी लोगों के बारे में नहीं कह सकते।
अप्रैल, 2018 में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने तो न्यायपालिका में आरक्षण हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू करने तक की बातें कह दी थी। उन्होंने पटना में आयोजित दलित सेना के राष्ट्रीय सम्मेलन में कहा था कि मैं लोजपा प्रमुख की हैसियत से बोल रहा हूं कि हमें न्यायापालिका में आरक्षण हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू करना चाहिए। हालांकि उन्होंने बिहार में निचली और उच्च न्यायिक सेवाओं में आरक्षण लाने के लिए नीतीश सरकार की सराहना भी की थी।