गत मंगलवार को बिल लोकसभा में पास हो गया। जब इस बिल पर चर्चा चल रही थी, तब विपक्ष के कई सांसदों ने मांग की कि आरक्षण पर 50 प्रतिशत का कैप बढ़ा देना चाहिए। सवाल यह है कि राजनीतिक दल आरक्षण की अधिकतम सीमा क्यों बढ़ाना चाहते हैं। क्या मौजूदा व्यवस्था में उन्हें ऐसा करने की अनुमति है।
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संविधान (127वां संशोधन) विधेयक 2021 के जरिए आरक्षण से जुड़े सिस्टम में बदलाव किया जाएगा। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने हिसाब से सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछले वर्गों की लिस्ट तैयार करने की अनुमति मिल जाएगी। बिल के पास होने से राज्यों को फिर से ओबीसी जातियों की सूची तैयार करने का अधिकार मिलेगा। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 342ए और 338बी तथा 366 में संशोधन किया गया है। बिल पास होने के बाद राज्य सरकारें अपने हिसाब से जातियों को ओबीसी कोटे में शामिल कर सकेंगी। हालांकि, आरक्षण की सीमा पचास प्रतिशत ही रहेगी। इसे भी खत्म करने की मांग उठाई जा रही है।
वहीं, संसद में सरकार को यह विधेयक पारित कराने में परेशानी नहीं आएगी। ज्यादातर राजनीतिक दल इसके पक्ष में हैं। कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दलों ने सामने आकर कह दिया है कि वे इस बिल का समर्थन करेंगी। अगले साल यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव है। वहां ओबीसी वोट हार और जीत तय करते हैं। ऐसे में विपक्षी नेता बिल पारित करने में अड़चन नहीं डालना चाहेंगे। यही वजह है कि बिल पर ठीक से चर्चा हो रही है।
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लोकसभा में सपा नेता अखिलेश यादव ने 50 प्रतिशत का कैप बढ़ाने की मांग रखी। सपा के अलावा, कांग्रेस, बीजू जनता दल, शिवसेना, एनसीपी, जदयू, समेत कई अन्य दलों ने आरक्षण की पचास प्रतिशत की सीमा खत्म करने की मांग रखी है।