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अब ममता बनर्जी पर मंडरा रहा ‘संवैधानिक संकट’
उत्तराखंड जैसी स्थिति अब पश्चिम बंगाल में भी उत्पन्न हो सकती है। तीरथ का यह ‘संकट’ अब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए भी सिरदर्द बन सकता है। तीरथ सिंह की तरह ममता बनर्जी भी राज्य की विधानसभा सदस्य नहीं हैं। कोरोना के कारण बंगाल में अगले कुछ महीनों में उपचुनाव नहीं होते है तो ममता के सामने भी तीरथ रावत जैसा संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है।
पश्चिम बंगाल की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी
बिना विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य चुने हुए केवल छह महीने तक ही कोई मुख्यमंत्री या मंत्री पद पर बना रह सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार, मुख्यमंत्री या मंत्री अगर छह महीने तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, तो उस मंत्री का पद इस अवधि के साथ ही समाप्त हो जाएगा। इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की स्थिति भी उत्तराखंड जैसी ही दिख रही है। यहां सीएम ममता बनर्जी अभी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं।
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ममता के सामने है ये चुनौतियां
पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी ने 4 मई 2021 को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। खुद नंदीग्राम में चुनाव हारने के चलते ममता राज्य विधानमंडल की सदस्य नहीं हैं। ऐसे में उन्हें अनुच्छेद 164 के तहत छह महीने के भीतर 4 नवंबर 2021 तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता है। उन्होंने अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के अंदर चुनाव हो सके। लेकिन कोरोना की वजह से चुनाव नहीं हो पाएंगे तो यह ममता की कुर्सी के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।