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इन राज्यपालों के फैसलों से बना और बिगड़ा राज्यों में सत्ता का गणित

इससे पहले भी कई राज्यों में कई राज्यपालों ने अपने विवेक के इस्तेमाल के बल पर कई सरकारों को बनाया और कई सरकारों को बिगाड़ा।

नई दिल्लीMay 16, 2018 / 12:32 pm

Mohit sharma

devgowda

नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद राज्य में सियासी हलचल जारी है। हालांकि अब यहां बीजेपी की सरकार बनना तय माना जा रहा है, लेकिन इससे पहले कांग्रेस और जेडीएस राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर चुके हैं। बावजूद इसके राज्यपाल ने कांग्रेस और जेडीएस वाली गंठबंधन सरकार के दावे को दरकिनार कर बीजेपी को सरकार बनाने का निमंत्रण भेजा और अंत में बीजेपी नेता येदियुरप्पा की अगुवाई में बनने वाली सरकार पर मुहर लगा दी। यह ऐसा पहला मामला नहीं है, जब किसी राज्य को इस तरह की सियासी घटनाओं से दो-चार होना पड़ा है। इससे पहले भी कई राज्यों में कई राज्यपालों ने अपने विवेक के इस्तेमाल के बल पर कई सरकारों को बनाया और कई सरकारों को बिगाड़ा।

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दरअसल, भारत में राज्यपालों के किरदारों को लेकर देश का इतिहास भरा पड़ा है। खासकर राज्यपाल की भूमिका तब अधिक सुर्खियों में रही जब किसी राज्य में नई सरकार का गठन होने जा रहा हो। फिर चाहे उत्तर प्रदेश में रोमेश भंडारी, बिहार में बूटा सिंह, झारखंड में सिब्ते रज़ी, कर्नाटक में हंसराज भारद्वाज समेत कई अन्य राज्यपालों का जिक्र सियासी इतिहास में होता रहा हो।

पी वेंकटसुबैया

यह 80 के दशक की बात है। उस समय कर्नाटक में प्रदेश के राज्यपाल पी वेंकटसुबैया थे। पी वेंकटसुबैया ने तत्कालीन सियासी मामले में हस्तक्षेप करते हुए उस समय राज्य के सीएम एसआर बोम्मई को हटा दिया था। उस समय राज्यपाल ने बस इतना कहा था कि राज्य सरकार अपना बहुमत खो चुकी है। हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाने के बाद फैसला बोम्मई के पक्ष में आया और वह फिर से सीएम बने।

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ठाकुर रामलाल

1983 से 1984 के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे ठाकुर रामलाल अपने एक फैसले को लेकर काफी सुर्खियों में रहे थे। ठाकुर रामलाल अपने एक फैसले से बहुमत हासिल एनटी रामराव की सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया था। दरअसल, उस समय एनटी रामाराव अपने दिन की बीमारी का इलाज कराने अमरीका गए हुए थे। तब उनकी गैर-मौजूदगी में राज्यपाल ने उसकी सरकार में वित्त मंत्री रहे एन भास्कर को राज्य का सीएम बना दिया था।

रोमेश भंडारी

यह सियासी घटना 1998 की है। उस समय उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेता कल्याण सिंह की सरकार थी। तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने अपने विवेक के बल पर कल्याण सिंह की सरकार को बर्खाश्त कर दिया था और उनकी जगह जगदंबिका पाल को नई सरकार बनाने का न्यौता दिया था। जगदंबिका पाल के सीएम बनने के बाद कल्याण सिंह इस मामले को कोर्ट तक ले गए थे।

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गणपतराव देवजी तापसे

एक ऐसी ही कहानाी हरियाणा से जुड़ी है। 1982 के दौरान राज्य में गणपतराव देवजी तापसे राज्यपाल थे। तापसे ने उस समय देवीलाल की सरकार को केवल इसलिए बर्खाश्त कर दिया था क्यों कि विरोधी भजनलाल ने देवीलाल के कई विधायकों को साथ कर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। तब राज्यपाल ने भजनलाल को सरकार बनाने का न्यौता था। यह मामला उन दिनों खूब चर्चा में रहा था।

सैयद सिब्ते रजी

यह सियासी घटना झारखंड से जुड़ी है। 2005 के आसपास यहां राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी। दरअसल, उस समय झारखंड में त्रिशंकु जनादेश के हालात पैदा हो गए थे। चौंकाने वाली बात यह है कि शिबू सोरेन के पास बहुमत न होते हुए भी राज्यपाल ने उसको सीएम पद की शपथ दिला दी। किरकिरी तब हुई जब बहुमत हासिल न कर पाने के चलते 9 दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई।

 

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