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दक्षिण गुजरात में मुकाबला दिलचस्प: BJP को खोने का डर तो कांग्रेस भी पाने को लेकर नहीं निश्चिंत

छोटू भाई की जीत- हार कांग्रेस के परंपरागत मतों पर निर्भर रहेगी जो अब तक छोटू भाई को हराने के लिए एक जुट हुआ करते थे।

Dec 07, 2017 / 11:35 am

ashutosh tiwari

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अनंत मिश्रा
महीने भर से विधानसभा चुनाव की गर्मी से तप रहे भरुच और नर्मदा जिले दो दिन से समुद्री तूफान ओखी की बौछारों से तर हो रहे हैं। प्रचार का गुरुवार को आखिरी दिन है इसलिए सत्ता के दोनों प्रबल दावेदारों भाजपा और कांग्रेस ने अपनी सारी ताकत झोंक दी है। दक्षिण गुजरात के प्रवेश द्वार के रूप में पहचाने जाने वाले इन दोनों जिलों ने पिछले चुनाव में भाजपा का भरपूर साथ दिया था। सात में से छह सीटों पर कमल खिला था तो एक सीट जनता दल (यू) के हाथ लगी थी। ऐसे में देखा जाए तो भाजपा के पास यहां पाने के लिए खास नहीं है।
पिछले चुनाव में दक्षिण गुजरात में खाता खोलने को तरस गई कांग्रेस को इस बार यहां उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। भरुच जिले की भरुच, अंकलेश्वर, जंबूसर और वागरा सीट जीतने वाली भाजपा के सामने जंबूसर में जहां उसके बागी जीत की राह में रोड़ा बने हुए हैं वहीं वागरा पर कांग्रेस प्रत्याशी मुस्लिम होने से कांटे की टक्कर बनी हुई है। भरुच में भाजपा बढ़त पर है तो अंकलेश्वर में मामला कांग्रेस के साथ सीधी और रोचक लड़ाई में तब्दील हो चुका है। झगडिय़ा सीट कांग्रेस ने जद (यू) नेता छोटू भाई वसावा के लिए छोड़ी है। दिलचस्प बात यह है कि यहां छोटू भाई की जीत- हार कांग्रेस के परंपरागत मतों पर निर्भर रहेगी जो अब तक छोटू भाई को हराने के लिए एक जुट हुआ करते थे।
कार्यकर्ताओं में जोश भरने में लगे दल
नर्मदा जिले की दोनों सीटों पर काबिज भाजपा को जीत के लिए इस बार दूसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। आदिवासी बाहुल्य दोनों सीटों पर हार – जीत का कारण सेंधमारी पर निर्भर रहेगा। देडियापाडा की सीट कांग्रेस ने यहां भी छोटू भाई वसावा की भारतीय ट्राईबल पार्टी के लिए छोड़ दी है। इस फैसले से नाराज तीन बार के विधायक रहे अमर सिंह वसावा कांग्रेस के बागी के रूप में ताल ठोंक रहे हैं। वसावा को मिलने वाले मतों से भाजपा- कांग्रेस की जीत की राह प्रशस्त होगी। नांदोद सीट पर राज्य के मंत्री शब्द शरण तडवी एक बार फिर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पिछले चुनाव में कम मतों से जीते तड़वी को पी.डी.वसावा दमदार चुनौती दे रहे हैं। शेष गुजरात की तरह यहां पाटीदार मतदाताओं का प्रभाव नहीं है। आदिवासी मतदाता पालों में बंटे हुए हैं। बेरोजगारी, जीएसटी और पानी की समस्या यहां रोजमर्रा की हकीकत है, लेकिन चुनावी शोर में गूंज सिर्फ जीएसटी की ही सुनाई देती है। दोनों दल वर्षा की फुहारों के बावजूद कार्यकर्ताओं में जोश भरने में जुटे हैं। भाजपा जहां अपनी पुरानी पकड़ कायम रखना चाहती है वहीं कांग्रेस यहां अपना खाता खोलकर गांधीनगर में सरकार बनाने की अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहती है।
चर्चा में अहमद भाई
भरुच जिले की राजनीति में कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल की तूती सालों से बोलती आ रही है। लेकिन इस बार पटेल पहले जैसे सक्रिय नहीं हैं। भरुच पटेल की राजनीतिक कर्मभूमि रही है। यहां पीएम नरेन्द्र मोदी , अमित शाह की सभाएं हो चुकी है वहीं कांग्रेस का एक भी बड़ा नेता यहां नही आ सका है।
छोटू भाई बनाम छोटू भाई
भरुच जिले की झगडिया सीट से पांच बार चुनाव जीत चुके छोटू भाई इस बार जद (यू) की बजाए भारतीय ट्राईबल पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने यहां जद (यू) के टिकट पर छोटू भाई वसावा नाम के ही प्रत्याशी को उतारा है। सालों से तीर के चुनाव चिन्ह पर लडऩे वाले छोटू भाई को इस बार टैक्सी चुनाव निशान मिला है तो उनके सामने मौजूद दूसरे छोटू भाई के पास तीर का चुनाव चिन्ह है। इससे असमंजस बना हुआ है।

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