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प्रतापगढ़

Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary बड़ेे पेड़ कम होने सेे उडऩ गिलहरी पर अस्तित्व का संकट

Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary बड़ेे पेड़ कम होने सेे उडऩ गिलहरी पर अस्तित्व का संकट

प्रतापगढ़May 18, 2022 / 07:05 am

Devishankar Suthar

Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary बड़ेे पेड़ कम होने सेे उडऩ गिलहरी पर अस्तित्व का संकट

Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary बड़ेे पेड़ कम होने सेे उडऩ गिलहरी पर अस्तित्व का संकट

Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary
संख्या का भी कोई सही अंदाजा नहीं
गत वर्षों से कम दिखाई देने लगी उडऩ गिलहरी
जंगल बचाने और संरक्षण की आवश्यकता
प्रतापगढ़. जिले के सीतामाता अभयारण्य की प्रमुख पहचान और यहां की परी के रूप में पहचान बनाने वाली उडऩ गिलहरी पर गत वर्षों से संकट मंडरा रहा है। इसका कारण इसके आवास स्थल बड़े पेड़ों के कोटर के खत्म होना है। ऐसे में इसके संरक्षण के लिए बड़े पेड़ को बचाना आवश्यक है। जिससे दुर्लभ वन्यजीव को बचाया जा सके। हालांकि सीतामाता अभयारण्य के आरामपुरा के जंगल में इसे देखा जा सकता हैै। लेकिन यह अब काफी कम दिखने लगी है।
सीतामाता अभ्यारण की पहचान और सीता माता की परी के रूप में क्या आप उडऩ गिलहरी का अस्तित्व पिछले कुछ वर्षों से खतरे में पड़ता जा रहा है। इसका कारण अभयारण में स्थित बड़े और ऊंचाई वाले पेड़ों का अंधाधुंध कटान प्रमुख है। इन बड़े पेड़ों की कोटरों में उडऩ गिलहरी अपना आशियाना बनाकर रहती है। ऐसे में इसके आवास खत्म होने के कारण उडऩ गिलहरी के लिए खतरा बनता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर संरक्षण की बात तो दूर, इसकी वास्तवित संख्या का भी कोई सही अंदाजा नहीं है। इनकी संख्या कम होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी समय में ऊंर्चाई वाले पेड़ों की कोटरों में शाम और रात के समय यह आसानी से लोगों को नजर आती थी। अब यहां काफी समय पर दो दिनों तक एक ही जगह बैठे रहने के बाद नजर आती है।
Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary आरामपुरा है प्रमुख आवास स्थल
सीतामाता अभयारण्य के आरामपुरा में इसक संख्या प्रमुख रूप से देखी गई है। यहां आरामपुरा इलाकेे में पुराने पेड़ धरशायी हो गए हैं। सडक़ किनारे के जंगल भी कम हो गया है। ऐसे में आरामपुरा में इन प्रजातियों के पेड़ लगाना आवश्यक है। यहां रेस्ट हाउस के इर्द-गिर्द अभी 4 उडऩ गिलहरी देखी जा सकती है। ऐसे में इनको यहां देखने औैर संख्या बढ़ाने के लिए घना प्लांटेशन किया जाने की जरूरत है। कारण यह हैै कि अब लैंङ्क्षडग और फ्लाइट के लिए और बड़े पेड़ कम होते जा रहे है। जिससे यह उडऩ गिलहरी रास्ता बदल रही है। ऐसे में जरुरी है कि अभी से संज्ञान लेकर पेड़ों का पौधारोपण किया जाए। स्वार्थों के कारण बड़े पेड़ों की कटाई
जंगल में लोग बड़़े पेड़ों को काटने पर कीमत अधिक मिलती है। ऐसे में अपने स्वार्थों के कारण वशीभूत बड़े पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं। खासकर बड़े पेड़ जिन्हें बेचने से अच्छी आमदनी होती हैं। ऐसे में उडऩ गिलहरी समेत कई जीवो को आशियाना खत्म होता जा रहा है। जो कई जीवों के अस्तित्व पर संकट होता जा रहा है।
गणना में केवल अनुमान
उडऩ गिलहरी की संख्या का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इसका मुख्य कारण है कि वन्यजीवों का गणना साल में एक बार होती हेै। जो जलस्रोत आधारित गणना होती है। जिसमें 24 घंटों के लिए वाटर ***** पर पानी पीने के लिए पहुंचने वाले वन्यजीवों की गणना होती है। वन्यजीव गणना सभी जीवों के लिए होती है। उसमें उडऩ गिलहरी की अलग से गणना नहीं होती है। वहीं गणना मुख्य रूप से पानी वाले स्थानों पार होती है। जिससे इनकी गणना का आंकड़ा सही नहीं हो पा रही है।
Flying Squirrel of Sitamata Sanctuary यह है उडऩ गिलहरी
उडऩ गिलहरी का स्लैटी काली भूरी रंगत वाली होती है। पेट थोड़ा सफेदी लिए हुए, पंूछ झबरैली होती है। अगले पैर से पिछले पैर तक झिल्ली या ढिली चमड़ी होती हैै। जो पेड़ से जम्प करने के दौरान उडऩे में सहायता करती है। इसका वैज्ञानिक नाम पितारिस्टा फिलिपेंसिस है। नाक गुलाबी रंगत, सिर से पांव तक 45 सेंटीमीटर लगभग, 50-52 सेंटीमीटर लंबी पूंछ कालपन लिए भूरी, स्लैटी होती हैै। अंग्रेजी नाम जोएंट फ्लाइंग स्क्वीरल हैै।
यह होते हंै उडऩ गिलहरी के आवास
यह अमुमन जंगलों में पुराने व ऊंचाई वाले पेड़ों की कोटर में रहती है। जिसमें महुआ के साथ सागवान की कोपलें खाती है। वहीं सागवान, महुआ, धोंक, आम, रोहण, जामून, तेंदू, पीपल, इमली, अर्जुन, साल, बहेड़ा, बरगद, आम, चिरौंजी, तेंदू आदि के बड़े पेड़ों में इनका आशियाना होता है। यह ऊंचाई से उड़ान भरती है जो जमीन पर आती है।
बड़े पेड़ों का संरक्षण आवश्यक
इसके आवास स्थल बड़े और ऊंचाई वाले सभी किस्मों के पेड़ है। लेकिन गत वर्षों में इन पेड़ों की कर्टाई होने लगी है। जिससे आवस स्थल कम होते जा रहे है। पेड़ों का संरक्षक किया जाना आवश्यक है। अगर इसको 10 साल बाद भी यहां देखना हो तो आरामपुरा के अंदर और बाहर इन पेड़ों का पुन: लगाना जरुरी है। रोड चौड़ी करने से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए इन पेड़ों के आसपास महुआ, सादाड़, तेन्दु, सागवान आदि का पौधरोपण करना होगा। हाल ही में हमनें यहां देखा गया है कि तेज गरमी के कारण उडऩ गिलहरी कोटर से निकल कर ठंडाई पाने के लिए धाक के घने पेड़ों में बैठी रहता है। ऐसे में यह द्योतक है कि जंगल में तेज गरमी उडऩ गिलहरी को कोटर से निकलने पर दिन में मजबूर कर रही है। जिससे इसके आसन से शिकार होने एवं तेज गरमी से मरने के खतरे पैदा हो गए हैं।
देवेंद्र मिस्त्री, पर्यावरणविद्

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