इस याचिका पर न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की पीठ ने सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं के वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, आठ अक्टूबर काे पुलिस दुपहिया वाहनों की चेकिंग कर रही थी। इस दाैरान पुलिसकर्मियों ने दाे युवकों काे रुकने का इशारा किया ताे उन्हाेंने बाइक काे दाैड़ा लिया जिससे वह दुर्घटना का शिकार हाे गए। पुलिसर्मियों ने उन्हे अस्पताल भिजवाया लेकिन इसी बीच भीड़ इकट्ठा हाे गई। भीड़ ने राेड जाम करते हुए पुलिसकर्मियों पर हमला बाेल दिया। यह भी बताया कि उसके याचिकाकर्ता उस भीड़ का हिस्सा थे लेकिन उनके खिलाफ काेई सबूत नहीं है जिनके खिलाफ पुलिस ने पुलिस पर हमला करने समेत अन्य आराेपाें में चार्जशीट दाखिल की है जाे गलत है। इसलिए चार्जशीट काे निरस्त किया जाए।
महा अधिवक्त की ओर से इन दलीलों का विराेध किया गया और कहा कि भीड़ का यह कृत्य कानून विराेधी और सरकारी कार्य में बाधा डालने के साथ-साथ कानून की अवज्ञा काे दर्शाता है। इसलिए चार्जशीट निरस्त करना उचित नहीं है। दाेनाें पक्षों काे सुनने के बाद प्रथम दृष्टया न्यायालय का विचार था कि याचिककर्ता और उन सभी लाेगाें का कृत्य जाे इस भीड़ का हिस्सा थे एक अपराध का गठन करते हैं जाे समाज में स्थापित शांति की जड़ों पर प्रहार करता है। अंत में न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि ‘ यह कहना सही नहीं है कि यह आराेप सच है’ इसका फैसला ट्रायल में किया जाना है लेकिन याचिकाकर्ताओं की यह मांग कि चार्जशीट को रद्द कर दिया जाए यह निराधार है। इसलिए यह आवेदन अस्वीकार किया जाता है।
हाईकाेर्ट ने यह भी कहा कि, पुलिस की ओर से दाखिल किए गए कागजात से यह प्रतीत हाेता है कि यह ऐसा मामला है जो नागरिकों के बीच कानून की अवाज्ञा करने वाले एक नए व्यवहार काे दिखाता है। यह कहते हुए हाईकाेर्ट ने कहा चार्जशीट काे रद्द करने की याचिका भी निराधार है।