वहीं दूसरे चरण की भर्ती २५ कर्मचारियों की भर्ती की गई। इसमें कर्मचारियों की परिवीक्षा अवधि दो साल पूरा हो गया। ऐसे में संबंधित कर्मचारियों को नियमित किया जाना था, लेकिन निगम के अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया। इस बात को लेकर आनंद तिवारी, शेखर मोडक, मनोज यादव, अरविंद द्विवेदी व अरुण यादव ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, वहीं नियमितिकरण की मांग को लेकर न्यायालय में परिवाद दायर किया। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने शासन से यह जवाब मांगा कि उनका नियमितिकरण क्यों नहीं किया जा रहा है। इस समय निगम ने न्यायालय को यह जवाब दिया गया था कि उनके मामले की जांच शासन स्तर पर लंबित है। इसकी वजह से नियमितिकरण नहीं किया जा रहा है। ऐसे में न्यायालय ने शासन को इस मामले में आदेशित किया है कि उक्त प्रकरण की जांच पांच माह में पूरा किया जाए। जांच के बाद जो भी निष्कर्ष निकलेगा, उसमें एक माह के भीतर कार्रवाई की जाए। इस आदेश को लेकर यह कहा जा रहा है कि पांच माह में मामले की जांच पूरी होगी और इस जांच में जो भी अपात्र होंगे उन्हें नौकरी से बाहर किया जाएगा। साथ ही जो पात्र होंगे उन्हें नियमितिकरण का लाभ दिया जाएगा।
शासन से भी आया निर्देश
इस फैसले में न्यायालय ने शासन को निर्देशित किया कि छह माह के भीतर उक्त कर्मचारियों के प्रकरण की जांच करते हुए उन्हें नियमित किया जाए। न्यायालय के इस आदेश के बाद शासन ने इस संदर्भ में नगर निगम आयुक्त के नाम पत्र भेजा है। इसमें आयुक्त को निर्देशित किया गया है कि उक्त कर्मचारियों के प्रकरण की जांच करने का आदेश दिया गया है।