कई बार स्थानीय चोर दोपहिया चुराकर ओडिशा गैंग को दे देता है। फिर गैंग उस दोपहिया को ओडिशा के अलग-अलग शहर या ग्रामीण इलाकों में बेच देता है। ओडिशा गैंग के अलावा बलौदबाजार, दुर्ग-भिलाई के दोपहिया चोर भी यहां वारदात करते हैं। इन दोपहिया चोरों की गिरफ्तारी नहीं होने के कारण गैंग के लोग बार-बार दोपहिया चोरी को अंजाम दे रहे हैं।
CG Crime: नंबर प्लेट भी बदलते हैं चोर
दोपहिया चोर गिरोह काफी शातिर है। दोपहिया चुराने के बाद उसका नंबर प्लेट भी बदल देते हैं, ताकि पुलिस उन तक पहुंच न पाए। कई बार सीसीटीवी फुटेज में दिखे नंबर प्लेट के आधार पर पुलिस दोपहिया की तलाश करती है, लेकिन वह नंबर प्लेट किसी दूसरे वाहन का होता है। हालांकि शहर में कई जगह सीसीटीवी फुटेज लगे हैं, जिससे दोपहिया चोरों की पहचान आसान हो गई है।
थानों के चक्कर काट रहे हैं कई पीडि़त
अलग-अलग थाना क्षेत्रों में दोपहिया चोरी होने पर पीडि़तों ने थाने में शिकायत की। पुलिस ने शिकायत के आधार पर एफआईआर कर लिया है। दोपहिया की तलाश में रुचि नहीं लेते हैं। एक-दो सीसीटीवी कैमरों की जांच के बाद आगे नहीं बढ़ते हैं। इसी कारण हर थाने में दोपहिया चोरी के अधिकांश मामले पेडिंग में चल रहे हैं। पुलिस आरोपियों को पकड़ नहीं पा रही है, तो दूसरी पीडि़त पक्ष थाने के चक्कर काट-काट कर परेशान हैं।
CG Crime: देरी से डेटा डिलीट होने का खतरा
दोपहिया चोरी के अधिकांश मामलों में पुलिस ध्यान नहीं देती है। इसका सबसे बड़ा नुकसान शहर में लगे सीसीटीवी कैमरों के डेटा का होता है। कई सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर में स्टोरेज क्षमता केवल एक सप्ताह, 10 दिन, 15 दिन, एक महीना आदि का होता है। अगर उतने दिनों में उन कैमरों के फुटेज नहीं निकाले गए या उनकी जांच नहीं की गई, तो डेटा डीलिट हो जाता है। उसमें से फुटेज नहीं निकाल पाते हैं। दोपहिया चोरी के मामलों में यही देखने में आ रहा है कि पुलिस जब तक मामले में रुचि लेती है, तब तक कैमरे का डेटा ही खत्म हो जाता है।