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रायपुर

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन अउ लेखन

हमर भासा

रायपुरSep 22, 2020 / 04:12 pm

Gulal Verma

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन अउ लेखन

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन अउ लेखन

छत्तीसगढ़ राज के राजभासा छत्तीसगढ़ी के मानकीकरन ह दूसर भासा म होवत मानकीकरन सरीख एक सतत प्रक्रिया आय, जोन चलत रइही। भलुक चलत हवय अउ वोकरे मुताबिक साहित्य बनत हवे।
उत्कृष्ट साहित्य और स्कूली पाठ्यक्रम बने से अउ वोकर सासन- प्रसासन म बउरे ले ही भासा के सुघराई अउ स्वीकराई ह बाढ़ही। अक्छरमन ल कांटे-छांटे के जरूरत नइये, भलुक वर्तमान म उपयोगी बाहिर के आगत सब्दमन ल अपन म सांघरे के ये बखत हवे। जेकर से हमर भासा पोठावय अउ सर्व स्वीकार होवय।
तथाकथित निमगापन के सेती कतकोन कटई -छटई अउ विकृत लिखई के सेती हमर छत्तीसगढ़ी अलकरहा टाइप होत हवे। वोला बचाय बर जरूरी हवय। नइते नवा पीढ़ी के मन अधरभोटकी हो जाही।
पैडगरी ह सड़क बनगे हवे त नरवा-नदिया म नवा तकनीक के पुल -पुलिया बनबेच करही। भाई तभेच गाड़ी नाहकही। नइते हमर पुरखामन निस्तारी बर बेसरम पैरा अउ काड़ी कोरई म बांध के भइंसागाड़ी बुलकात आय हे कहिके पुल पुलियामन ल वोइसनेच बनाबोन त बड़का अउ जबर ट्रक हाइवा अउ 100 सीटर डबल मंजिल वाले स्लीपर बस कइसे नाहकही? कइसे हरहिंछा चलाय सकबोन, भला बताव?
सोच अउ स्वीकार्य भाव याने कि हमर समोखे के सक्ति ल बनेच चकराय ल लगही। वोला कोन्टा -कुन्टी म सकेले के जादा जरूरत नइये। काबर कि आज दरभा घाटी बस्तर के होय कि दोंदरोघाट सरगुजा के या मालवीय रोड रायपुर के लोगन होय सब एन्ड्रायडधारी ग्लोबल हो गे हे। उंकर जरूरत ल समझन अउ उंकरे समझ के मुताबिक रचनाकारमन उंकर अघाय बर जिनिस ऊपजावन। तभेच बने रइही।
रही बात निमगापन के त आजकल कोनो चीज निमगा नइ रहिगे हे। निमगामन बने मिठावय तको नइ। जब तक वोमा कई रकम के मसाला नइ मिंझरबे त खाय के मन तको नइ लागय। हिंदी के मिंझरापन म का गजब के ताकत हवय। वोमा गंगा जमुना संस्कृति के बड़ सुग्घर झलक देखे ल मिलथे। भले कोनो-कोनो मन संस्कृतनिस्ट करके क्लिस्ट करत बौद्धिक आतंक फैलाय के कोसिस करिन। फेर उनमन रदिया गे। उंकर पूछंता नइये। भासा ह बोहावत पानी आय। वोला कुआं के पानी नइ बनाय बर चाही।
एक सरल घरुंदहा बात आय सोचव कि सोझे निमगा मुनगा भाजी तको नइ मिठाय। भलुक रइलहा अउ करवन्धा लागथे। जब तक वोमा राहेरदार, कोनो घुंघरी या आलू नइ मिझारबे तब तक। हां भई, कोनोमन अपन सुवाद मुताबिक रांध-गढ़ सकथे। ऐमा कोनो रोकई-छेकई लगई सही नोहय।
अउ, एक बात हमन ल छत्तीसगढ़ी के असल रुवाप देखे बर हे त आपमन हमर प्राचीन पुरातत्व के जिनिस देखव। जोन सिरपुर, मल्हार, ताला, तुम्मान, राजिम, आरंग, भोरमदेव, पचराही, खरचा, डमरू, जइसन जगा म जतनाय हवे। उहां के पाली म लिखाय सिलालेख पढ़व। पाली अउ छत्तीसगढ़ी के अन्तरसंबंध ल फोरियाय। काबर ऐहा इहां 2500 बछर ले पहिली चलत जन भासा आय। जोन ह आज हमन के उदासीनता, अगियानता अउ अनदेखी के सेती बिसरा गे।
अग्गि-आगि, मनख -मनखे, सच्च-सच-सत जैसे के तैसे हव। वोला बनेच चेतलगहा जाने समझे ल परही। तभेच असल दुबराज धान गोबर खातु डारे हमर छिरहा खेत कस पाहू। जेकर से पूरा मंझनिया चक ह महर-महर करथे ।
ये बीच म परप्रांतिक के औपनिवेसिक साहित्य अउ सांस्कृतिक प्रदूसन ल ही अपन कहे के भोरहा से बाहिर निकले परही। काबर विगत सौ बछर ले उहीमन पागा बांधे पगरैती करत आत हवे। वोकर असर तो हवे। वोला घलो धीरे से उतारे परही। तब जाके कुछ ठोसलगहा हो सकही। नइते हमन कतकोन लिखन- पढऩ नकलची कहाबोन अउ तुहर ले पहिली हमन डहन ये सब होगे हवे। वोकर पटन्तर अउ अनुवाद आय कइही। असनेच कहत तको हवंय। त अइसे म तुहर-हमरमन के जस-गुन ल वोमन कइसे धरही या मानही-गुनही?
लिंखता. पढं़ता अउ गुनइयामन थोरिक गहिर -गंभीर होके सोच -समझ के ये कारज ल करे ल परही। हल्कापन लेय से का गत्त हो गे हे वोहा तो डगडग ले दिखबेच करत हवे।

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