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World Family Day : आज भी मिसाल बना हुआ हैं यह परिवार, एक साथ बनता हैं 26 मेंबर का खाना

World family day: आज के जमाने में संयुक्त परिवार की कल्पना करना आसान नही है। परिवारों में मनमोटाव होना आम बात हो गई हैं लेकिन ऐसे में पंडरी का शर्मा परिवार मिसाल बना हुआ है। यहां 26 मेंबर का खाना एक साथ बनता है।

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 26 मेंबर का परिवार

26 मेंबर का परिवार

Raipur news आज के जमाने में संयुक्त परिवार की कल्पना करना आसान नही है। ऐसे में पंडरी का शर्मा परिवार मिसाल बना हुआ है। यहां 26 मेंबर का खाना एक साथ बनता है। तीन भाइयों के परिवार में सबसे बड़े सदस्य जागेश्वर प्रसाद शर्मा की उम्र 75 साल है जबकि सबसे छोटे लक्ष्य पांच साल के हैं। अमित शर्मा ने बताया, बड़े पिताजी ने सभी चाचा और बुआ को पढ़ाया और उनका घर बसाया। उन्होंने सभी से कहा था कि जीवन में कितने भी उतार-चढ़ाव आ जाएं साथ मत छोड़ना। तबसे हम साथ ही रहते हैं।

शादी से पहले रखते हैं शर्त

अमित ने बताया, हमारे परिवार में जब भी कोई शादी होती है हम एक शर्त रखते हैं कि संयुक्त परिवार में रहना होगा। बड़े बुजुर्गों ने जो एथिक्स बनाए हैं उनको फॉलो करना है। शर्मा परिवार का फर्नीचर, डेयरी और कंट्रक् शन का काम है।

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एक्सपर्ट टॉक- क्यों टूट रहे हैं संयुक्त परिवार?

संयुक्त परिवार टूटने के दो कारण हैं। पहला यह कि लोगों के फाइनेंशियल सोर्सेस अलग-अलग होने लगे हैं। पहले एक व्यवसाय में सभी भाई (World family day) रहते थे, पूरे परिवार का पोषण उसी के सहारे हो जाता था, जहां आपसी सहनशीलता कम हुई वहीं लोगों ने अपने लिए व्यवसाय और नौकरियों के नए अवसर अलग जगह तलाशने शुरू कर दिए।

दूसरा कारण भी आर्थिक सोर्सेस को लेकर ही जुड़ा है । भाइयों में से किसी ने ऐसी डिग्री ले ली जिससे सम्बंधित नौकरी अगर उस शहर में नहीं है तो वे अपना परिवार लेकर अन्य जगह शिफ्ट हो गया, हालांकि इस वाले मामले में पारिवारिक मेलजोल और प्रेम बना रहता है। चाहे मामला आर्थिक हो या पारिवारिक , परिवार टूटना कहीं न कहीं हमारी जड़ों के कमजोर होने को ही दिखाता है क्योंकि दूर होने पर फिर वो बॉन्डिंग नहीं रह जाती।

हर सुख-दुख बिताने का हो जज्बा

परिवार टूटने के पारिवारिक कारणों पर चर्चा करें तो अब सभी भाइयों के परिवार और उनके बच्चों के परिवारों में युवाओं में आर्थिक और (World family day) अन्य स्वतंत्रता को लेकर अंसतोष रहता है। चूंकि संयुक्त परिवार में मासिक खर्चों ,शौक , आकस्मिक खर्चों जैसे किसी की बीमारी के मामले में किसी एक सदस्य पर अधिक खर्च बाकियों के मन मे असंतोष लाने लगा है।

जबकि पहले ऐसा नहीं रहता था। पहले अपना बेटा कोई गलती करता तो चाचा डांट लेते थे, बुआ ,बच्चों को सम्हाल लेती थीं। सब एक-दूसरे के बच्चों को ऐसे सहेजते थे कि अपने से ज्यादा। अब रिश्तों में वो उदारता नहीं रही। आज (World family day) भी संयुक्त परिवार ही सबसे ज्यादा सफल हैं बशर्ते कि रवैया पारदर्शी हो। सहनशीलता हो, साथ साथ हर सुख-दुख बिताने का जज्बा हो।

प्रज्ञा त्रिवेदी, पारिवारिक सलाहकार

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