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रायपुर

लोकतंत्र के आत्मकथा

मय लोकतंत्र अंव! साढ़े तीन कोरी बछर पहिली अमीरमन के कोठी म जनम धरे रेहेंव। जेला पाले-पोसे के जतन, कोनो परकार ले जिंदा रखे के उदिम अउ सुरकछा के पक्का इंतजाम गरीब, बेबस मनखेमन करत हाबंय।

रायपुरJan 23, 2023 / 04:47 pm

Gulal Verma

लोकतंत्र के आत्मकथा

लोकतंत्र के आत्मकथा

न हाथ-गोड़, न मुड़ी -कान। अइसे दिखत हे, कोन जनी कब छूट जही परान। सिरिफ हिरदे धडक़त हे। गरीब के झोपड़ी म हे तेकर सेती जीयत हे। उही रद्दा म रेंगत बेरा उदुप ले नजर पर गे, बिचित्र परानी उप्पर। जाने के इच्छा जागिरित होइस। बिन मुंहु के परानी ल गोठियावत देखेंव। सुकुरदुम होगेंव। सोचे लागेंव- कोन होही ऐहा? ऐकर अइसे हालत कइसे होइस अउ ऐहा कइसे जियत हे?
तभे, हांसे लगिस वोहा। अउ, केहे लगिस- तेहा अइसे सोचत हावस बाबू, जानो-मानो मोला कभु नइ देखे हस। मय अवाक रहिगेंव। अभु ले पहिली सहीच म तोला देखे नइ हंव, त जानहूंच कइसे? मोर अइसन हालात के जुम्मेदार तहूं तो हस। न जान, न पहिचान अउ उप्पर ले मोरे उप्पर आरोप घलो लगावत हे। मय उठे ल धरेंव। अरे, ऐहा अंधरा हे, फेर मोला कइसे चिन्हत हावय? ऐकर कान-नाक घलो नइये। कइसे सुनत हे? मुंहु कते करा हे- गोठियावत कती ले हे? समझ नइ अइस।
मोर जिग्यासा बाढ़ गिस। उठत रेहेंव, ते बइठ गेंव। बइठ बाबू। मोला अइसन हालत म अमरा के तहुं भागना चाहत हस। अइसे कतको अइन, कतको गिन। कोनो ल मोर उप्पर तरस नइ अइस।
तैं कोन ***** तेला तो बता? बतावत हंव बाबू, अधीर झन हो। अभु ले बहत्तर बछर पहिली मोर जनम होय रिहिस। जनम देवइयामन मोला जनम देके पाछू राखना नइ चाहिन। जेकर डेरौठी म ओड़ा देथंव तिही दुतकारथे। जेन मनखे ल अपन समझथंव, उहींचे ले दुत्कार मिलथे।
पहिली व्यवस्थापिका के बीच इस्थापित होय के परयास करेंव। वोमन मोला खूबेच मारिन-पीटिन। अउ मय रेंगे झन सकंव कहिके- मोर गोड़ ल टोर दिस। केउ घांव मोर नाक इंकरेमन के सेती कटिस। जइसे-जइसे इहां ले निकल के कार्यपालिका कोती परस्थान करेंव। देखते-देखत मोर हाथ ल काट दिस ऐमन। ताकि कुछु काम झन कर सकंव। बड़ निरास होगे रहेंव।
फेर, आसा के किरन दिखिस न्यायपालिका कोत। उहू हथियार धरके बइठे रिहिस। जातेच साठ दिमाग ल नंगालिस। सोचे झन सकय कहिके। पल्ला भागेंव- चउथा खंभा कोती। उहू कमती खतरनाक नइ रिहिस। मोर आए के अगोरा म रिहिस ऐमन। जइसे पहुंचेव, तइसे देख झन सक, सुन झन सकय- कहिके आंखी अउ कान ल काट के अपन झोला म रख लिन।
मय पूछेंव- ऐमन का करही तोर अंगमन ला? जेमन मोर गोड़ ल राखे हावंय तेमन जनता ल बतावत फिरथें- देख हमन अपन गोड़ म नइ, वोकरे गोड़ म वोकरे रद्दा म रेंगत हंन। इहीमन मोर नाक ल कटवा के, अपन नाक म लगवाके, अपन नाक ल उंच करके घूमथें। जेमन मोर हाथ ल धरे हें, तेमन कहिथें- वोकरे हाथ ले हमन जनता बर काम करत हंन। मोर दिमाग लुटइयामन मोरे दिमाग ले हमर कारज चलत हे कहिके डंका बजावत फिरथें। अउ आंखी-कान लेगइयामन जनता ल ए कहिके भरमाथें कि, हम वोकरे आंखी-कान के हिसाब ले अपन कलम चलाथन।
मय पूछेंव- अइसन म, तोर अउ कोनो अंग ल लेगे बर आ जही तब? तंय ये गरीब के कुटिया म कइसे सुरक्छित रहि सकबे? ऐमन तोला आके मार डरहीं तब? हा.. हा..हा..। अभु तक हमर देस के ये चारों खंभा के कोनो नायक, गरीब के कुटिया के डेरौठी म अपन पांव नइ मढ़ाए हे अउ न अवइया समे म मढ़ाए। त ऐकर ले सुरक्छित जगा कती हे, तिहीं बता? रिहिस बात मोर मरे-जिये के – मय उहें जिंदा रहि सकत हंव, जिहां गरीब भुखहा मोर पेट भरय। जिहां उघरा-नंगरा किसान मोर तन ढाकंय। जेमन अपन बर नइ कर सकय, तोर का बेवस्था करहीं? खुद मुसकल ले जियत हें। तोला का जिन्दा राखहीं? इही सच हे बाबू! इंकर तीर सच, अहिंसा, भाईचारा अउ ईमान के हवा बोहावत हे। इही हवा मोर जिए बर उरजा देथे। मोर जिए के परमान पांच साल म देखा घलो देथें ऐमन। अउ, जब तक ये हतियारामन के पांव इंकर डेरौठी म नइ परही, मोला कोनो तकलीफ नइये। मय तभु तक अराम से जिन्दा रहिहूं।
मिही लोकतंत्र अंव बाबू! जे साढ़े तीन कोरी बछर पहिली अमीर मन के कोठी म जनम धरे रेहेंव। जेला पाले-पोसे के जतन, कोनो परकार ले जिंदा रखे के उदिम अउ सुरक्छा के पक्का इंतजाम गरीब, बेबस, लचार मनखेमन करत हावंय। वइसे हतियारामन मोला जान समेत मार देय बर चाहथें, फेर मोर मरे के ‘घोसना’ नइ चाहय, ताकि मोर ‘नांव’ ले इंकर ‘दुकान’ चलत रहय, बिना विघन-बाधा के। तहुंमन सोचव अउ कोन-कोन जुम्मेवार हे मोर दुरदसा के…।

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