माओवादियों का कोई लेना-देना नहीं
सरकार ने खुफिया विभाग से इस बात की भी जानकारी मांगी थी कि आंदोलन में माओवादियों की कितनी भूमिका थी। बताया जाता है कि रिपोर्ट में माओवादियों की भूमिका को पूरी तरह से नकार दिया गया है। खुफिया विभाग के अफसरों का मानना है कि यदि इसमें माओवादियों की भूमिका रहती तो तत्काल इसकी आग बस्तर क्षेत्र में फैल जाती। माओवादियों को इस बात की भी आशंका थी कि आदिवासी संगठित हो गए तो उनके अस्तित्व पर संकट आ जाएगा।
सरकार ने मांगे थे सुझाव
झारखंड के बाद अप्रैल में जशपुर में पत्थलगड़ी की शुरुआत हुई थी। जशपुर जिले के गांव बछरांव से यह आंदोलन चर्चा में आया। पांचवीं अनुसूची के नाम पर आदिवासी सड़क पर उतर आए थे। गांवों में शिलालेख लगाए गए थे। जब मामला तूल पकड़ा तो सरकार ने अपनी पार्टी को आगे कर दिया था। भाजपा कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों के बीच काफी विवाद भी हुआ था। पत्थलगड़ी आंदोलन के लगातार उग्र होने पर राज्य सरकार एसआइबी से हवा का रुख पूछा था। साथ ही इसे अन्य जिलों तक फैलने से रोकने के लिए सुझाव मांगे थे।
गतिविधियों पर निगाह
आंदोलन के शांत होने के बाद अब इससे जुड़े हुए कुछ लोगों की गतिविधियों पर निगाह रखी जा रही है। साथ दोबारा इस तरह की गतिविधियों में लिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए गए हंै।
सरकार ने उठाएं यह कदम
– सरकार ने पार्टी नेताओं को आगे किया।
– भ्रामक जानकारी देने वालों की धरपकड़ हुई।
– स्थानीय लोगों के साथ संवाद कायम करने व उनकी शिकायतों को दूर करने का प्रयास हुआ।