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शोपिस बने स्कूल बस के सीसीटीवी कैमरे

नहीं होती कोई रिकार्डिंग,सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन का सरेआम हो रहा उल्लंघन

रायसेनSep 24, 2018 / 05:07 pm

Amit Mishra

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शोपिस बने स्कूल बस के सीसीटीवी कैमरे

रायसेन. शहर सहित जिलेभर के प्रायवेट स्कूलों की बसों में न तो सीसीटीवी कैमरे लगे और न ही महिला कर्मचारियों को नियुक्त किया गया है। जिन प्रायवेट स्कूलों की बसों में यदि सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं तो पता चला है कि उनमें रिककार्डिंग तक नहीं हो रही है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का निजी स्कूल प्रबंधन कड़ाई से पालन नहीं कर रहे हैं। आरटीओ सहित शहर की यातायात पुलिस कभी इन प्रायवेट स्कूल की बसों की चैकिंग तक करना मुनासिब नहीं समझते हैं। ऐसे में स्कूल बसों में छात्राओं सहित बच्चे असुरक्षित भरा सफर करने के लिए मजबूर हैं। शायद जिला व पुलिस- प्रशासन किसी बड़ी घटना घटित होने का इंतजार कर रहा है।


75 फीसदी बसों में लगाए जा चुके कैमरे

रायसेन शहर में लगभग पच्चीस से से ज्यादा प्रायवेट स्कूल संचालित हैं। लेकिन इन निजी स्कूलों में से बमुश्किल एदर्जन से अधिक स्कूलों में ही बस सुविधा है।जिला परिवहन कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक जिलेभर के प्रायवेट स्कूलों की 100 बसें पंजीकृत हैं। इनमें 75 फीसदी बसों में कैमरे लगाए जा चुके हैं। बाकी बसों में यह सुविधा जल्द दी जाएगी।

बसों में सीसीटीवी कैमरे बने दिखावा
जिन प्रायवेट स्कूलों की बसों में सीसीटीवी कैमरे जैसे-तैसे लगवा लिए थे। बताया जाता है कि हकीकत में उनकी रिकार्डिंग नहीं हो रही है। असलियत तो यह है कि बस के भीतर की गतिविधियों को कैमरे शूट तक नहीं करते हैं। ऐसे में स्कूली छात्राओं सहित मासूम बच्चों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लग रहे हैं। पुलिस प्रशासन तमाम इन सब मामलों से बेखबर है।सिर्फ सीसीटीवी कैमरे लगाकर स्कूल बसों में देखने के बाद सुरक्षित मान लिया जाता है।लेकिन हो इसके विपरीत रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के मापदण्ड ताक पर
दरअसल स्कूल बसें सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन का किसी भी तरह से पालन नहीं कर रही हैं। इसमें स्कूल प्रबंधन व अनुबंधित बस मालिकों की और उनमें सवार होकर जाने वाली शिक्षिकाओं की भी मिलीभगत शामिल रहती है। सूत्र बताते हैं कि जिन स्कूलों की शिक्षिकाओं की ड्यूटी यदि बसों में सवार होकर घर जाती हैं तो वह भी सीटों पर बैठी रहती हैं। बाद मं चौराहों पर अपने परिजनों को मोबाइल से फोन कर बुलाकर दुपहिया वाहनों में सवार होकर अपने घर चली जाती हैं। इस तरह बसों में सवार छात्र-छात्राएं अकेले ही बचते हैं। खासकर छात्राएं काफी भयभीत रहती हैं। मप्र के इंदौर जिले में एक मासूम नर्सरी की बच्ची के साथ इस तरह की छेड़छाड़ की घिनौनी हरकत हाल ही में उजागर हो चुकी है।

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अभिभावकों की शिकायत को तवज्जो नहीं
जिनके बच्चे स्कूल बसों में आना जाना करते हैं। इन अभिभावकों का कहना है कि जिन स्कूलों में अनुबंधित बसें लगी हैं स्कूल प्रबंधन भी हाथ खड़ा कर देते हैं। स्कूल प्रबंधन भी इस मामले को गंभीरता पूर्वक नहीें लेते हैं। बस मालिक कुछ भी कह देते हैं। जब सीसीटीवी कैमरे के फुटैज मांगें जाते हैं तो वह यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि सीसीटीवी कैमरे में रिकार्डिंग नहीं हो रही है। बस से आवागमन करने वाली शिक्षिकाएं नाराज हो जाती हैं। वह परीक्षाओं में छात्र-छात्राओं के नंबर काट लेती हैं।

ये करने की है आवाश्यकता
यातायात पुलिस व जिला पुलिस प्रशासन को स्कूल बसों में लगे सीसीटीवी कैमरों की चैकिंग करवा लेना चाहिए।चालक-परिचालक का पुलिस वैरिफिकेशन कराना जरूरी है।उन शिक्षिकाओं पर पूरे टाइम नजर रखना जो स्कूल से घर तकजाती हैं। अभिभावकों कीे संजीदगी से शिकायतों सुनकर उन पर तत्काल कार्रवाई करना चाहिए।बसों के अंदर टोल फ्री नंबर अंकित होना चाहिए।ताकि संबंधित को शिकायत कराने में आसानी हो सके ।स्कूल बसों में पुलिस का हेल्पलाइन भी लिखना अनिवार्य है। बसों का रंग पीला होना चाहिए। बीचों बीच लाल पट्टी और स्कूल का नाम लिखवाना जरूरी है।


जिलेभर में लगभग सौ बसें प्रायवेट स्कूलों की संचालित हैं। इनके पंजीयन भी आरटीओ में दर्ज हैं। इनमें 25 बसें अनुबंधित बसें भी उनके मालिकों ने निजी स्कूलों में किराए पर लगा रखी हैं। इन सौ बसों में से 25 बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाना बाकी है। जल्द ही इन बसों में भी सीसीटीवी कैमरे की सुविधा मिल जाएगी।सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का फिलहाल कड़ाई से पालन कराया जा रहा है।
रीतेश कुमार तिवारी आरटीओ रायसेन

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