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ब्यावरा सिटी थाने में पदस्थ कांस्टेबल कैलाश नायक ब्यावरा के एक चौराहे पर ड्यूटी के दौरान पता चला कि एक युवक भूखा-प्यासा बैठा रहता है वह गूंगा बहरा है कुछ बोल भी नहीं पाता। नायक युवक को थाने ले आए, पर युवक मूक बधिर होने से अपना नाम पता नहीं बता सका। कैलाश नायक ने युवक को देखकर पता करने की कोशिश की पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। फिर शुरु हुआ युवक के परिवार को खोजने का सफर और आखिर 8 महीने बाद वह अपने प्रयास में सफल हुए और अवधेश के परिजनों को ढूंढ निकाला और युवक को उसके परिवार के पास पहुंचा दिया।
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परिवार का सदस्य बना लिया
कैलाश नायक ने फिलमी कहानी की तर्ज पर पहले युवक के परिजनों को ढूढने का प्रयास किया जब सफलता नहीं मिली तो उसको अपने घर ले आए। परिवार के सदस्यों ने भी युवक को अपने घर के सदस्यों की तरह रखा। कैलाश की पत्नी ने उसका नाम भी रख दिया अब लोग उसे गजानंद के नाम से जानने लगे। कैलास ने हार नहीं मानी और युवक के घरवालों की तलाश जारी रखी। आखिर 8 महीनों के बाद युवक का परिवार मिल ही गया।
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एसे मिला परिवार
कैलास नायक की जहां भी ड्यूटी लगती वह युवक के फोटो के साथ पूछताछ करते रहते । जब उनकी ड्यूटी हाईवे पर लगती तो वहां से गुजरने वाले ट्रक चालकों को भई फोटो दिखाते और पता करने में लगे रहते। इस दौरान देशभर के थानों में युवक की फोटो भेजकर खोज जारी रखी तभ पता चला कि बिहार के सीवान जिले के बिलासपुर का एक मूक बधिर युवक लापता है। जब युवक के फोटो को माता-पिता ने देखा तो पहचान लिया और आखिर युवक को उसका परिवार मिल गया।