scriptबांझपन-अफलन का हल नहीं, इसलिए हरी सोयाबीन ही काट रहे किसान | There is no solution to infertility, hence farmers cutting green soybe | Patrika News
राजगढ़

बांझपन-अफलन का हल नहीं, इसलिए हरी सोयाबीन ही काट रहे किसान

-अन्नदाता की बढ़ रही पीड़ा-बची हुई पर ईल्ली का प्रकोप, पत्तियां छलनी कीं, दवाइयां भी नहीं कर रही असर

राजगढ़Aug 22, 2019 / 06:06 pm

Amit Mishra

rajgarh

ब्यावरा। प्राकृतिक आपदा (अफलन, बांझपन) का शिकार हुई खरीफ की प्रमुख उपज सोयाबीन ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। शासन स्तर पर फोटो सेशन वाले निरीक्षण, मौका, मुआयना जारी है लेकिन यह भी प्रैक्टिल समाधान सोयाबीन के बांझपन का नहीं है। ऐसे में किसानों को इसका कोई हल नहीं सूझ रहा तो वे हरी खराब हो चुकी सोयाबीन को ही काटने में जुट गए हैं।

 

दरअसल, बांझपन और अफलन के कारण सोयाबीन में न फुल पनप पा रहे हैं न ही वे आगे वृद्धि कर पा रही। लगातार बारिश में हाईट जरूर पौधों की काफी ऊंची हो गई, दिखने में खेत हरे-भरे भी नजर आ रहे हैं लेकिन हकीकत में उनमें जरूरत के हिसाब के फल ही नहीं आ पाए। जिस क्षेत्र में शत-प्रतिशत सोयाबीन बांझपन, अफलन का शिकार हुईहै वहां रिकवर होने के चांस बेहद कम हैं। हालांकि जिलेभर में औसतन 20 फीसदी सोयाबीन इसकी चपेट में आई है।


80 प्रतिशत रिलॉवरिंग की उम्मीद, लेकिन बारिश की जरूरत भी
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मौसम की छूट मिल जाने के बाद रिलॉवरिंग की उम्मीद कुछ हद तक है, 80 फीसदी रिलॉवरिंग होगी लेकिन जिस अनुपात में फूल आना चाहिएउतने नहीं आपाएंगे। ऐसे में किसानों को मौजूदा पौधे को बचाने के लिए ईल्ली के प्रकोप से बचाना होगा।

rajgarh

सोयाबीन को खतरा

यदि मौजूदा पौधा आखिर तक भी इसी हाल में रहा तो दोबारा आने वाले फुल कुछ हद तक नुकसान कवर कर पाएंगे लेकिन शत-प्रतिशत लाभ तो उन्हें भी नहीं मिलेगा। वहीं, उक्तसोयाबीन की उपज को पूरी तरह से तैयार होने में अभी और बारिशकी जरूरत है।भले ही लगातार बारिश हो गईहो लेकिन अब यदि बारिश नहीं हुई तो सोयाबीन को खतरा फिर भी रहेगा।


…और शासन के प्रयास सर्वे, मुआयने तक सीमित
सालभर दफ्तरों में बैठकर ही शासन की योजनाओं को कागजों में निपटाने वाले कृषि विभाग के जिमेदार दो-चार खेतों में पहुंकर फोटो खिंचवाने में व्यस्त हैं। यदि समय रहते है ये ईमानदारी से काम कर लेते तो किसानों को यह दिक्कत नहीं होती। तमाम कृषि विस्तार अधिकारियों के यही हाल हैं, गांवों में जाकर किसानों की काउंसलिंग करना तो दूर उन्हें बेहतर परामर्श तक ये नहीं देते। किसानों को उचित सलाह नहीं मिल पाने से वे न सिर्फ मनमाना बीज बो देते हैं बल्कि जानकारी के अभाव में जरूरत से ज्यादभी बो देते हैं और मनमानी कीटनाशक के छिड़काव से सोयाबीन पर उल्टा असर होने लगता है।


फैक्ट-फाइल
-06 लाख हैक्टेयर कुल खेती की जमीन जिले में।
-3 लाख 40 हजार हैक्टेयर में सोयाबीन।
-20 प्रतिशत सोयाबीन में बांझपन की शिकायत।
-80 प्रतिशत रिकवर होने की उम्मीद।
(नोट : कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार)

बची हुई सोयाबीन को बचाने ये करें किसान
-उचित परामर्श लेकर ही कीटनाशक का छिड़काव करें।
-खेत में पानी एकत्रित न होने दें।
-कैसे भी कर के ईल्ली न लगने दें।
-ईल्ली के लिएछिड़की जाने वाली कीटनाशक में करीब 700 लीटर पानी प्रति बीघा हो।
-कीटनाशक की मात्रा बढऩे से सोयाबीन की वृद्धि भी प्रभावित होती, किसान समझें।
-रिलावरिंग (पुन: फुल आने पर) के दौरान पूरी सावधानी बरतें।
(कृषि विभाग, कृषिविज्ञान केंद्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार)

 

सर्वे करवाया है, शासन को रिपोर्ट देंगे
अभी मैं मीटिंग में हूं, हमने शासन स्तर पर जिलेभर में सर्वे शुरू करवाया है। सोयाबीन के नुकसान का ही आंकलन किया जा रहा है। रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी, जैसे भी निर्णय होंगे उसी हिसाब से काम किया जाएगा।
-हरिश मालवीय, उप-संचालक, कृषि विभाग, राजगढ़


बची हुईसोयाबीन को बचाएं किसान
सही मात्रा में कीटनाश का छिड़़काव कर और बची हुई सोयाबीन की प्रॉपर सुरक्षा कर उसे बचाया जा सकता है। 8 0 प्रतिशत उमीद है कि रिलॉवरिंग हो जाएगी जिससे नुकसान की भरपाई की जा सकेगी। किसान भाईकृषि विभाग, वैज्ञानिकों से उचिक सलाह लेकर ही काम करें।
-डॉ. अखिलेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, राजगढ़

Home / Rajgarh / बांझपन-अफलन का हल नहीं, इसलिए हरी सोयाबीन ही काट रहे किसान

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो