scriptVideo : कुटीर उद्योगों के जरिए हजारों हाथों को काम देना संभव | It is possible to employ thousands of hands through cottage industry | Patrika News
राजसमंद

Video : कुटीर उद्योगों के जरिए हजारों हाथों को काम देना संभव

बिल्ड अप इण्डिया – इन्डेप्थ स्टोरी- पांच दशक पूर्व भी गांवों में आसानी से सुलभ था रोजगार- मार्बल उद्योग को भी मिलेगी राहत- प्रवासियों के कौशल से कई नए काम शुरू हो सकेंगे

राजसमंदMay 28, 2020 / 01:52 pm

Rakesh Gandhi

Video : कुटीर उद्योगों के जरिए हजारों हाथों को काम देना संभव

Video : कुटीर उद्योगों के जरिए हजारों हाथों को काम देना संभव

राकेश गांधी
राजसमंद.
लॉकडाउन के पहले चरण से लेकर अब तक हजारों प्रवासी जिले में आ चुके हैं। इस समय जब दुकानें खुल चुकी हैं, कारोबार शुरू हो रहे हैं, ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों के समक्ष भी रोजी-रोटी को लेकर नए संकट उत्पन्न हो रहे हैं। सरकार व प्रशासन यदि इन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित करे तो हजारों लोगों को उनके घर में ही काम करवाते हुए रोजगार सुलभ करवाया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि ऐसा तीस साल पूर्व तक होता था, जब जिले के विभिन्न कस्बों व गांवों में लोगों को सौ से अधिक विभिन्न कार्यों में रोजगार सुलभ था। अभी भी देवगढ़ क्षेत्र में ऐसा हो रहा है।

जब मिला हुआ था हजारों को रोजगार
अस्सी व नब्बे के दशक में केन्द्र सरकार के खादी और ग्रामोद्योग आयोग व राजस्थान खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड के तहत संचालित विभिन्न कुटीर उद्योगों में हजारों महिला व पुरुषों को रोजगार सुलभ था। महिलाएं घर बैठे अपना घर खर्च निकाल रही थी, तो पुरुष वर्ग सौ से अधिक तरह के कार्यों में अपनी कुशलता से परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। ये सब उन्हें अपने गांव व अपने घर में रहते सुलभ हो रहा था।

इस तरह के थे कुटीर उद्योग
वैसे मुख्यत: खादी के लिए सूत काटना व कंबल बुनाई का काम सभी क्षेत्रों में चलता था, लेकिन इसके अलावा मेहंदी के कोण, दाल-दहलन, पापड़-बड़ी, अचार-मुरब्बे, लोहे का संदूक, अलमारी, दरवाजे बनाने का काम, माचिस की तीलियां आदि कई काम थे, जो पुरुष व महिलाएं मिलकर आसानी से करते रहे हैं। ये वो काम हैं, जो आज भी ग्रामीण लिहाज से आसानी से किए जा सकते हैं। कच्चा माल संबंधित गांवों में आसानी से सुलभ है। उस दौरान सघन क्षेत्र विकास समिति के माध्यम से भी कई स्कील्स में रोजगार मिला हुआ था। ये राजनगर में आज भी संलालित हैं, जहां कई लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

ऐसा भी किया जा सकता है
अपने गांवों में लौटे प्रवासी देश के विभिन्न राज्यों में अपने-अपने कौशल के बूते रोजगार पा रहे थे। कोरोना वायरस के संक्रमण के खौफ के चलते लागू हुए लॉकडाउन ने उन्हें बेरोजगार कर दिया और वे अपने पैतृक गांवों में लौटने को मजबूर हो गए। चूंकि ये सभी कामगर हैं, ऐसे में उन्हें उनकी कुशलता के हिसाब से विभिन्न कुटीर उद्योगों में खपाना आसान होगा। इसके अलावा जिस तकनीक में उन्हें कुशलता हासिल है, उन्हें उसी हिसाब से यदि काम दिया जाए, तो उन्हें रोजगार से जोडऩा और आसान होगा। संभव है उनकी कुशलता से जिले में कुछ नए कारखाने खड़े हो जाए।

मार्बल उद्योग में ज्यादा संभावना
इस जिले में मार्बल उद्योग में लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ था। चूंकि कई श्रमिक दूसरे राज्यों के थे, उनमें से अधिकांश अपने पैतृक गांवों को लौट चुके हैं। ऐसे में मार्बल उद्योग को फिर से खड़ा करने के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की जरूरत होगी। हालांकि इस व्यवसाय में अलग तरह का कौशल चाहिए, ऐसे में नए सिरे से ग्रामीण श्रमिकों को प्रशिक्षण देकर एक-दो माह में इस काबिल बनाया जा सकता है।
गांवों में सुलभ कच्चे माल आधारित कुटीर उद्योग से मिलेगी नई राह
मेरा मानना है कि यदि हम गांवों में सुलभ कच्चे माल की उपलब्धता के अनुसार कुटीर उद्योगों में युवाओं को रोजगार सुलभ करवाएं, उन्हें आत्मनिर्भर बनने को प्रेरित करें तो बेहतर होगा। हम पांच दशकों से ऐसा कर रहे हैं। अभी भी हम देवगढ़ में ग्रामोद्योग विकास मंडल के जरिए हजारों लोगों को रोजगार दे रहे हैं। क्षेत्र में कपास प्रचुर मात्रा में होती है, अत: हम महिलाओं को सूत बनाने में प्राथमिकता देते हैं, जिसके लिए हम १५ हजार की कीमत का अम्बर चरखा भी सुलभ करवाते हैं। इससे महिलाएं घर बैठे आठ घंटे काम करते हुए ३०० रुपए तक कमा सकती है। खादी के लिहाज से मेवाड़ का अपना नाम रहा है। इसके अलावा मेहन्दी के कोण, पापड़-बड़ी का काम भी अच्छा चल रहा है। कई कामकाज हैं, जिनसे युवाओं व महिलाओं को जोड़ा जा सकता है। जरूरत युवाओं को प्रेरित करने व बैंकों से मिलने वाले ऋण की प्रक्रिया के सरलीकरण की है। युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने का इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं हो सकता। इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए गांव-गांव में विभिन्न कौशल प्रशिक्षण केन्द्र शुरू किए जा सकते हैं। बहुत रास्ते हैं, जरूरत सभी पक्षों को जागरुक होने की है।
जीतमल कच्छारा, अध्यक्ष- ग्रामोद्योग विकास मंडल देवगढ़ तथा पूर्व उपनिदेशक, जिला उद्योग केन्द्र
गुणवत्तापूर्ण स्थानीय ब्रांड स्थापित करने की जरूरत
कोरोना महामारी के समय में अर्थव्यवस्था में चुनौतियों के साथ-साथ नवीन अवसर भी सृजित हो रहे हैं। प्रवासी श्रमिकों के पलायन से उत्पन्न संकट का सामना करने के लिए स्थानीय स्तर पर उन्हें प्रशिक्षित करने, ऑनलाइन मार्केटिंग की सुविधा उपलब्ध कराने तथा गुणवत्तापूर्ण स्थानीय ब्रांड स्थापित करने की महती आवश्यकता है। पोस्ट कोरोना पीरियड में सेहत एवं स्वच्छता के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ेगी, जिससे ऑर्गेनिक फार्मिंग उत्पादों की मांग में इजाफा होगा। अत: कृषि क्षेत्र में ऑर्गेनिक पदार्थों के इस्तेमाल से नवीन रोजगार उत्पन्न किया जा सकता है। इससे हजारों युवाओं को काम देना संभव होगा।
– सहीराम, महाप्रबंधक-जिला उद्योग केन्द्र
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