दरअसल हम सभी अपने बच्चों पर कभी न कभी चिल्लाए होंगे। उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई होगी। ये वो बातें हैं जिनके लिए हमें क्षमा मांगनी चाहिए। गलती करने पर हमारा माफी मांगना बच्चों के साथ हमारे रिश्ते को मजबूत करता है। हालात कैसे भी हों अगर आप बच्चों की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे हैं तो उनसे बेहिचक माफी मांगिए। उन्हें एहसास कराएं कि क्या परिस्थितियां हुईं और आपने जानबूझकर उनकी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाई।
माता-पिता माफी मांगने के बाद बच्चों से उन हालातों पर बात करें जिनके चलते उन्हें ऐसा करना पड़ा। इससे आपसी समझ, तारतम्यता और सौहार्द बढ़ेगा। बच्चों में भावनाओं को समझने की क्षमता बढ़ेगी। हालांकि ऐसा कर पाना सभी पैरेंट्स के लिए आसान नहीं। अगर माता-पिता बच्चों से इस कदर खुली चर्चा कर पाने में असमर्थ हैं तो वो ये किसी करीबी दोस्त, रिश्तेदार या बच्चों में से ही किसी के जरिए कर सकते हैं। ये भी संभव न हो तो लिखकर अपनी बात रखी जा सकती है।
किशोरों के मामले में उनकी मानसिक अवस्था से उपजे विचारों को स्वीकार करना भी माफी का ही एक स्वरूप है। किशोरों की शिकायत होती है कि अक्सर उनके माता-पिता उनकी ओर कम ध्यान देते हैं।
नकारात्मक भावनाएं भी जीवन का हिस्सा हैं। माफी मांगने की कोई सही उम्र नहीं होती। बच्चों से सॉरी कहने के लिए अपने आप का सम्मान करें क्योंकि यह कोई साधारण बात नहीं है।