बीमारी से जूझते अनीष अकेले संकट से नहीं घिरे हैं, बल्कि उनसे छोटे दो और भाई 21 साल के मनीष और 18 साल के मनोज यादव की स्थिति भी यही है। इन दोनों का वजन भी अनीष की तरह तेजी से गिर रहा है। अगर मनोज को छोड़ दें तो उनके दो बड़े भाई मुश्किल से अपने पैरों पर खड़े हो पाते हैं। उनका समय खाट या कुर्सी पर बैठे ही बीतता है। अगर दो कदम भी आगे बढ़े तो धड़ाम से गिर पड़ते हैं। कमजोरी की वजह से हड्डियां टूटने का डर हर वक्त सताता रहता है। परिवार ने एम्स तक की दौड़ लगाई लेकिन अमेरिकी शोध तक में यह पता नहीं चल पाया कि आखिर वे किस बीमारी की चपेट में हैं। जो उनका शरीर खाए जा रहे हैं।
गुजारे का संकट
अनीष बीमारी से जूझ रहे दो और भाईयों सहित 7 भाई-बहन हैं। चार के साथ ऐसा संकट नहीं है, बहनों की शादी हो चुकी है और वह स्वस्थ हैं। लेकिन इन तीनों का पता नहीं चल रहा है कि आखिर समस्या क्या है। पिता रामनरेश यादव अंजोरा गांव के उसरी टोला के छोटे किसान हैं तीन बीमार बेटों की परवरिश उनपर भारी पड़ रही है और अब तो गुजारे की समस्या खड़ी हो गई है। उधर पिता रामनरेश यादव भी बीमार हैं और शरीर जर्जर होने से उतना काम नहीं कर पाते।
बचपन ऐसा नहीं था
यह भी हैरान करने वाला है कि तीनों भाई बचपन में कुपोषित तक नहीं थी। उम्र बढऩे के बाद समस्या शुरू हुई। मां प्रेमवती बताती हैं कि अनीष पूरी तरह से स्वस्थ पैदा हुआ था। लेकिन कुछ साल बाद ही समस्या शुरू हो गई। 2005 में डॉक्टरों की सलाह पर नईदिल्ली के एम्स में लेकर गए। काफी जांच के बाद भी बीमारी का पता नहीं चल पाया तो डॉक्टरों ने अमेरिका में शोध कराने के लिए सैंपल भेजे। लेकिन उसकी रिपोर्ट अब तक नहीं मिली। बीमारी की वजह से ही आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी क्योंकि स्कूल जाना और वहां दिनभर बैठे रहना कठिन हो रहा था। वे बताती हैं कि आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चौपट हो गई है। कहीं से कोई मदद नहीं मिलने से मुश्किल बढ़ रही है। वे बेटों को तिल-तिल कर टूटते हुए देख रही हैं।
सालभर पहले हुई जांच, बीमारी का पता नहीं चला
रहस्यमय बीमारी से जंग लड़ रहे मनोज यादव (18) ने भाइयों अनीष यादव (24) व मनीष यादव (21) के साथ फरवरी 2020 में तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल किया तो तत्कालीन कमिश्नर डॉ. अशोक भार्गव ने गंभीरता से लिया। उन्होंने तीनों भाइयो को त्योथर बीएमओ को भेजकर संजय गांधी अस्पताल में भर्ती कराया और जांच कराई । फिर भी बीमारी का पता नहीं चला। तब कमिश्नर ने तीनों भाइयो को ट्राइसिकल और दिव्यांगता की पेंशन स्वीकृत कराई। इस दौरान चिकित्सकों ने भोपाल स्थित रिसर्च सेंटर में जांच के लिए भेजने का आश्वासन दिया था। एक साल बीत गए। कश्मिनर के स्थानांतरण के बाद सभी भूल गए।