मुख्य अतिथि डॉ. दिनेश कुशवाह ने कहा कि-कविता ने हर युग के सामाजिक बदलाव को एक सार्थक दिशा दी है तथा व्यवस्था को बेपटरी होने से बचाया है। अध्यक्ष शुक्ल ने कहा कि कविता में मनुष्य को देवता बनाने की क्षमता होती है अर्थात् कवित्व से देवत्व की राह सुगम हो सकती है। उन्होंने आह्वान किया कि बच्चों के लिए भी कविताएं लिखा जाना परम आवश्यक है।
काव्य पाठ का प्रारंभ बघेली बोली के शीर्ष कवि डॉ.अमोल बटरोही द्वारा मां वीणापाणि के लिये प्रस्तुत वंदना के साथ हुआ। डा. बटरोही ने प्यार की फसल उगाने पर जोर देने बाला अपना यह प्रसिद्ध गीत पढ़ा- बोबा न बरुक कुछ दिना परती परी रहय, बोबइ का होय अंजुरी भर प्यार बोइ दा।
वरिष्ठ गीतकार गिरजा शंकर शुक्ल गिरीश ने चिंता और विश्वास की भाव भूमि पर गीत की ये पंक्तियां पढ़कर श्रोताओं की सराहना पाई- क्या पता राष्ट्र का पथ किधर जायेगा, यह संवर जायेगा या उजड़ जायेगा। स्नेह के दीप तुम टिमटिमाते रहो, रात का हर प्रहर भोर पा जायेगा।
बघेली कवि सुधाकांत मिश्र ‘बेलाला के साथ ही गीतकार शिवशंकर त्रिपाठी शिवाला ने पत्थर शीर्षक से मुक्तक पढ़कर समा बांधा- बाबुल के बगीचों को लगाती हैं बेटियां, ससुराल के सपनों को सजाती हैं बेटियां, बेटों से एक कुल की ऑन भी न संभली, दो-दो कुलों की ऑन बचाती है बेेटियां।
हास्य व्यंग्य के वरिष्ठ कवि रामनरेश तिवारी ‘निष्ठुर, वरिष्ठ कवि सूर्यमणि शुक्ल, युवा कवि उमेश मिश्र लखन, कवि प्रमोद मोदक एवं सुमित द्विवेदी ने भी अपने काव्य पाठ से श्रोताओं को प्रभावित किया। कार्यक्रम में सन्तोष द्विवेदी, हरीश द्विवेदी, रामगोपाल राल्ही, रामरक्षा शुक्ला, राजेश द्विवेदी, मुकेश द्विवेदी आदि का सहयोग रहा।