रेलवे अपनी ही वेशकीमती जमीन को नहीं बचा पा रहा। आलम यह है कि अब रेलवे की आराजी में अपराध पनपने लगा है। बाहरी लोगों ने कब्जा करते हुए दर्जनों झोपड़े रेल परिसर में तान दिए हैं। इन झुग्गियों में रहने वाले कौन लोग हैं, कहां से आए और इनका कारोबार क्या है? इसके बारे में किसी को पता नहीं। बावजूद इसके न तो रेलवे के आला अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहे और न ही रेल परिसर की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार अफसर गंभीर हैं। सतना. रेलवे स्टेशन सतना के पश्चिमी ओर जो रास्ता राजेन्द्र नगर और सिविल लाइन के लिए खुलता है वहीं पर दर्जनों झोपड़े बना लिए गए हैं। इस आराजी को रेलवे ने सुरक्षित रखने के उपाय ही कभी नहीं किए। अनदेखी का नतीजा है कि झोपड़ों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। कई साल पहले अपनी जमीन से कब्जा हआने के लिए रेलवे ने बड़े स्तर पर कार्रवाई कराई थी। तब रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटा था और कई महीनों पर रेल परिसर की जमीन सुरक्षित रही। लेकिन वक्त बीतने के साथ जब रेलवे के अफसरों ने यहां से नजर हटाई तो फिर से झुग्गी बस्ती आबाद हो गई। सुरक्षा से जुड़े जानकार बताते हैं कि इन्हीं झुग्गी बस्तियों में रहने वाले कुछ लोग रेलवे परिसर और शहरी इलाके में अपराध भी कर जाते हैं। रात को रोशन रहती झुग्गियां यह बात सामने आई है कि रेलवे की जमीन पर कब्जा कर बनाई गई झुग्गियां रात को भी रोशन रहती हैं। चिमनी की रोशनी में यहां कई एेसे कृत्य होते हैं जो कानून की नजर में अपराध की श्रेणी में आते हैं। कई बार यहां आपसी लड़ाई में खूनी संर्घष तक हो चुके। रहने के लिए झुग्गियों के साथ कुछ लोगों ने सड़क किनारे तिरपाल तान कर दुकानें भी खोल रखी हैं। पत्थर का बड़ा कारोबार रेलवे की जमीन पर ही उन तमाम लोगों ने अपने घर और कारोबार आबाद कर रखे हैं जो पत्थर की नक्कासी का काम करते हैं। शहर में रहने वाले कुछ लोग इन्हें संरक्षण देते हैं। पत्थर की मूर्ति, सिल-बट्टे का यहां से बड़े स्तर पर काम होता है। शहरी क्षेत्र से इन कब्जेधारियों को हटाया जा चुका है। लेकिन रेलवे अपनी जमीन खाली नहीं करा सका। क्या कर रही रेल पुलिस? रेल सुरक्षा बल और राजकीय रेल पुलिस की जिम्मेदारी बनती है कि रेलवे परिसर में रहने वाले बाहरी तत्वों की जांच करें। यह कौन लोग हैं, किस अधिकार से रेलवे की जमीन पर काबिज हुए और इनके काम धंधे क्या हैं? इसके बारे में रेलवे की इन दोनों एेजेंसियों को जांचना चाहिए। लेकिन आरपीएफ और जीआरपी दोनों के पास ही झुग्गियों के रहने वाले इन बाहरी लोगों का ब्योरा नहीं है।